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विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों २१ से २५ तक में पूर्वोक्त पंचविध देवों की उद्वर्त्तना (आयुष्य पूर्ण क होने) के तत्काल बाद उनकी गति-उत्पत्ति का निरूपण किया गया है, जिसके अनुसार भव्य-द्रव्यदेवों के के लिए कहा गया है कि भव्य-द्रव्यदेवों में भावि देव भव का स्वभाव होने से वे नारक आदि तीन भवों (नरक, तिर्यंच, मनुष्य) में उत्पन्न नहीं होते हैं।
इसी प्रकार नरदेवों की उद्वर्तनानन्तर उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि यदि कामभोगों में म आसक्त नरदेव (चक्रवर्ती) उनका त्याग नहीं करते तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, इसी कारण शेष तीन + भवों (तिर्यंच, मनुष्य और देव) में उनकी उत्पत्ति का निषेध किया गया है। यद्यपि कई चक्रवर्ती देवों 5
में या सिद्धों में तभी उत्पन्न होते हैं, जब नरदेव रूप को त्याग कर धर्म देवत्व को प्राप्त कर लेते हैं, म अर्थात् चक्रवर्तित्व को छोड़कर चारित्र अंगीकार करके धर्मदेव (साधु) बन जाते हैं।
Elaboration—In the aforesaid five statements (21-25) information about rebirth immediately after death of said five kinds of gods. According to the said information as Bhavya-dravyadevs are destined to be born as divine beings they do not get reborn as any other beings including infernal, animal and human.
In the same way about rebirth of Naradevs it is mentioned that if they do not renounce mundane indulgences they get reborn as infernal beings and as such their rebirth in other three genuses (animal, human and divine) is negated. However, some of them get reborn as divine beings or get liberated if they renounce their mundane status of Naradev (Chakravarti) and get initiated to become ascetics and gain the status of Dharmadev.
पंचविध देवों की स्व-स्वरूप में संस्थिति प्ररूपणा THE LIFE-SPAN OF FIVE KINDS OF GODS IN THEIR CURRENT STATUS
२६. [प्र.] भवियदव्वदेवे णं भंते ! 'भवियदव्वदेवे' त्ति कालओ केवचिरं होइ? ॐ [उ.] गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। एवं जच्चेव
ठिई सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवस्स। नवरं धम्मदेवस्स जहन्नेणं एक्कं समयं # उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
२६. [प्र.] भगवन्! भव्य-द्रव्यदेव, भव्य-द्रव्यदेव रूप से कितने काल तक रहता है?
[उ.] गौतम! (भव्य-द्रव्यदेव, भव्य-द्रव्यदेव रूप से) जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से है तीन पल्योपम तक रहता है। इसी प्रकार जिसकी जो (भव-) स्थिति कही है, उसी प्रकार उसकी ॐ संस्थिति भी (पूर्वोक्त नरदेवादि) यावत् भावदेव तक कहनी चाहिए। मुख्य बात यह है कि धर्मदेव र की (संस्थिति) जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि वर्ष तक की होती है। ..
| भगवती सूत्र (४)
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Bhagavati Sutra (4) | 5555555555555555555555555555555555