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[3.] हंता, गोयमा ! असइ अदुवा अनंतखुत्तो ।
५- १. [प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में, पृथ्वीकायिक रूप से यावत् वनस्पतिकायिक रूप से, नरक रूप में (नरकावासरूप पृथ्वीकायिक रूप), पहले उत्पन्न हुआ है ?
[उ.] हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुका है।
in
5-1. [Q.] Bhante ! Has this jiva (soul / living being) been born earlier three million infernal abodes on this Ratnaprabha Prithvi (first hell) in earth-bodied form... and so on up to... plant-bodied form or infernal form ?
[Ans.] Yes, Gautam ! It has been born thus many times or infinite times. ५- २. [ प्र. ] सव्वजीवा वि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरया. ? [3. ] तं चेव जाव अणंतखुत्तो ।
५- २. [प्र.] भगवन्! क्या सभी जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से
प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, नरकपने और नैरयिकपने में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ?
[उ.] (हाँ, गौतम !) उसी प्रकार ( पहले की तरह) यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हुए हैं।
5-2. [Q.] Bhante ! Have all jivas (souls / living beings) been born earlier
in three million infernal abodes on this Ratnaprabha Prithvi (first hell)
in earth-bodied form... and so on up to ... plant-bodied form or infernal form ?
[Ans.] (Yes, Gautam !) As aforesaid, it has been born thus many times or infinite times.
६. [ प्र. ] अयं णं भंते! जीवे सक्करप्पभाए पुढवीए पणवीसाए. ?
[ उ. ] एवं जहा रयणप्पभाए तहेव दो आलावगा भाणियव्वा । एवं जाव धूमप्पभाए ।
६. [प्र.] भगवन्! क्या यह जीव शर्कराप्रभा पृथ्वी के पच्चीस लाख (नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में, पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, यावत् पहले उत्पन्न हो चुका है ? )
भगवती सूत्र (४)
(364)
Bhagavati Sutra ( 4 )
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