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Elaboration-Bhagavan Mahavir has said that the
statement that
Rahu has seized or snapped or swallowed the moon is virtual and not actual. It is the shadow of Rahu that falls on the moon; as such the said act of swallowing of the moon by Rahu is simply partial covering of the moon, which is a natural phenomenon and not an intended act.
ध्रुवराहु और पर्वराहु का स्वरूप तथा चन्द्र को आवृत - अनावृत करने का कार्यकलाप
DHRUVA RAHU AND PARVA RAHU AND VEILING AND UNVEILING OF THE MOON
३. [ प्र. ] कइविधे णं भंते! राहू पन्नत्ते ?
[उ.] गोयमा ! दुविहे राहू पन्नत्ते, तं जहा - धुवराहू या पव्वराहू य । तत्थ णं जे से वराहू से बहुपक्खस्स पाडिवए पन्नरसइभागेणं पन्नरसइभागं, चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे आवरेमाणे चिट्ठइ, तं जहा - पढमाए पढमं भागं, बिइयाए बिइयं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं। चरिमसमये चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते वा विरत्ते वा भवइ । तमेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे २ चिट्ठइ-पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ ।
तत्थ णं जे से पव्वराहू से जहन्नेणं छण्हं मासाणं; उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स, अडयालीसाए संवच्छराणं सूरस्स ।
३. [प्र.] भगवन्! राहु कितने प्रकार का कहा गया है ?
[3.] गौतम! राहु दो प्रकार का कहा गया है, यथा - ध्रुवराहु (नित्यराहु ) और पर्वराहु ।
उनमें से जो ध्रुवराहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, `चन्द्र
बिम्ब के पन्द्रहवें भाग को बार-बार ढँकता रहता है, जैसे प्रतिपदा को चन्द्रमा के प्रथमं भाग को ढँकता है, द्वितीया को दूसरे भाग को ढँकता है, इसी प्रकार यावत् अमावस्या को (चन्द्रमा के ) पन्द्रहवें भाग को ढँकता है। कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आच्छादित) हो जाता है, और शेष समय में चन्द्रमा रक्त (कुछ भाग आच्छादित) और विरक्त (कुछ भाग अनाच्छादित) रहता है। इसी कारण शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर यावत् पूर्णिमा तक प्रतिदिन (चन्द्रमा का) पन्द्रहवाँ भाग दिखाई देता रहता है, शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा पूर्णत: अनाच्छदित हो जाता है और शेष समय में वह ( चन्द्रमा) रक्त (कुछ भाग आच्छादित) और विरक्त (कुछ भाग अनाच्छादित) रहता है।
इनमें से जो पर्वराहु है, वह जघन्य से छह मास में चन्द्र और सूर्य को आवृत करता है और उत्कृष्ट से बयालीस मास में चन्द्र को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढँकता है।
भगवती सूत्र (४)
(350)
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Bhagavati Sutra ( 4 )
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