SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 855555555555555555555555555555555555558 म खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, म एगयओ सत्तपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे, म म एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिपएसिए खंधे, म एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दो चउप्पएसिया ॐ खंधा भवंति; अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयओ तिपएसिए खंधे, एगयओ चउप्पएसिए के खंधे भवइ; अहवा तिण्णि तिपएसिया खंधा भवंति। चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि म परमाणुपोग्गला, एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला के एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला में एगयओ तिपएसिए खंधे, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, म एगयओ दो दुपएसिया खंधा, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति; अहवा' एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खंधा, एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ। पंचहा कज्जमाणे के एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ तिन्नि म है परमाणुपोग्गला, एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयओ चउपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ म तिण्णि परमाणुपोग्गला, एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति; अहवा एगयओ दो ॐ परमाणुपोग्गला, एगयओ दो दुपएसिया खंधा, एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ चत्तारि दुपएसिया खंधा भवंति। छहा कज्जमाणे एगयओ म पंच परमाणुपोग्गला, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ चत्तारि ॐ परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ म तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खंधा भवंति। सत्तहा कज्जमाणे एंगयओ . म छ परमाणुपोग्गला, एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ पंच परमाणुपोग्गला के एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति। अट्ठहा कज्जमाणे एगयओ सत्त परमाणुपोग्गला, एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ। नवहा कज्जमाणे नव परमाणुपोग्गला भवंति।। ___९. [प्र.] भगवन् ! नौ परमाणु-पुद्गलों के एकरूप से इकट्ठे होने पर क्या बनता है? [उ.] गौतम! उनका नवप्रदेशी स्कन्ध बनता है। यदि उसके विभाग किये जाएँ तो दो, तीन 卐 यावत् नौ विभाग हो जाते हैं। 卐 दो विभाग किये जाने पर एक ओर एक परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक अष्टप्रदेशी स्कन्ध होता है। इस प्रकार क्रमशः एक-एक का संचार (वृद्धि) करना चाहिए, यावत् अथवा एक ओर एक चतुष्प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक पंचप्रदेशी स्कन्ध होता है। | भगवती सूत्र (४) (276) Bhagavati Sutra (4)
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy