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________________ 0 5 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95558 फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ 18- 1. [Q.] Bhante ! What is good for living beings to remain sleeping or awake? [Ans.] Jayanti! It is better for some to remain sleeping and for some to remain awake. १८-२. [ प्र. ] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ - ' अत्थेगइयाणं जाव साहू ' ? [उ.] जयंती ! जे इमे जीवा अहम्मिया अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्मपलोई अहम्पलज्जणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरांति, एएसि णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू। एए णं जीवा सुत्ता समाणा नो बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणया सोयणयाए जाव परियावणयाए वट्टति । एए णं जीवा सुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति । एएसिं णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू | जयंती ! जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, एएसिं णं जीवाणं जागरियत्तं साहू । एए णं जीवा जागरा 'समाणा बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणयाए वट्टति । तेणं जीवा जागरमाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति । एए णं जीवा जागरमाणा धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरइत्तारो भवंति । एएसि णं जीवाणं जागरित्तं साहू । से तेणट्ठेणं जयंती ! एवं वुच्चइ - ' अत्थेगइयाणं जीवाण सुत्तत्तं साहू, अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू । १८-२. [प्र.] भगवन्! ऐसा किस कारण कहते हैं कि कुछ जीवों का सुप्त रहना और कुछ जीवों का जागृत रहना अच्छा है ? [उ.] जयन्ती! जो जीव अधार्मिक, अधर्म का अनुसरण करने वाले, अधर्मिष्ठ, अधर्म का कथन करने वाले, अधर्म का अवलोकन करने वाले, अधर्म में आसक्त, अधर्म का आचरण करने वाले और अधर्म से ही आजीविका करने वाले हैं, उन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है; क्योंकि ये जीव सुप्त रहते हैं, तो बहुत-से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख शोक यावत् परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते। ये जीव सोये रहते हैं तो अपने को, दूसरे को और स्व-पर दोनों को अनेक अधार्मिक संयोजनाओं (प्रपंचों) में नहीं फँसाते हैं। इसलिए इन का सुप्त रहना अच्छा है। जीवों 'जयन्ती! जो जीव धार्मिक हैं, धर्म का अनुसरण करने वाले, धर्मप्रिय, धर्म का कथन करने वाले, धर्म का अवलोकन करने वाले, धर्मासक्त, धर्म का आचरण करने वाले और धर्म बारहवाँ शतक: द्वितीय उद्देशक Twelfth Shatak: Second Lesson (257) फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ फ
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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