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85555555555555555555555555555555555555 - [२९] श्रमण भगवान महावीर से (क्रोधादि कषाय का) ऐसा फल सनकर और उन्हें 卐 अवधारण करके वे (सभी) श्रमणोपासक उसी समय (कर्मबन्ध से) भयभीत, त्रस्त एवं संसारभय
से उद्विग्न हुए। तदोपरान्त उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और फिर जहाँ
शंख श्रमणोपासक था, वहाँ उसके पास आए। वहाँ उन्होंने शंख श्रमणोपासक को वन्दन-नमस्कार फ़ किया और फिर अपने उस अविनयरूप अपराध के लिए विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करने लगे।
29. On hearing about and understanding these consequences (of an4 ger and other passions) those shramanopasaks got afraid and distressed
of the impending cycles of rebirth (samsaar). After that they paid homage 41 to Shraman Bhagavan Mahavir and came where Shankh shramanopasak
sat. Arriving there, they paid him homage and humbly sought forgive4 ness again and again for the fault of immodesty they had earlier commit+ ted. . . ३०. तए णं ते समणोवासगा सेसं जहा आलभियाए (स. ११ उ. १२) जाव पडिगया।
- [३०] तत्पश्चात् उन सभी श्रमणोपासकों ने भगवान से कई प्रश्न पूछे, इत्यादि सब वर्णन म (श. ११ उ. १२ में वर्णित) आलभिका (नगरी) के (श्रमणोपासकों के) समान जानना चाहिए, यावत् वे सभी अपने-अपने स्थान पर लौट गये।
30. The shramanopasaks then asked numerous questions to Bhagavan Mahavir etc. as mentioned about the shramanopasaks of Aalabhika city (Chapter-11, lesson-12)... and so on up to... returned to their respective abodes.
मक्ति के विषय में गौतम स्वामी का प्रश्न, भगवान का उत्तर GAUTAM SWAMI'S QUESTION ABOUT SHANKH'S LIBERATION ____३१. [प्र.] 'भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-पभू णं भंते ! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं।
[उ.] सेसं जहा इसिभद्दपुत्तस्स (स. ११ उ. १२) जाव अंतं काहेइ। सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ।
॥ बारसमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥१२-१॥
| बारहवाँ शतक : प्रथम उद्देशक
(245)
Twelfth Shatak : First Lesson
85)
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