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प्राथमिक INTRODUCTION
DWADASH SHATAK (CHAPTER TWELVE)
बारसमं सयं : बारहवाँ शतक
व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के बारहवें शतक में कुल 10 उद्देशक हैं ।
पहले उद्देशक में श्रावस्ती नगरी के श्रमणोपासक शंख द्वारा निराहार पौषध करने तथा पुष्कली आदि अन्य श्रमणोपासकों द्वारा आहार सहित पौषध करने का वर्णन किया गया है। इसके अलावा तीन प्रकार की जागरिका का भी निरूपण किया गया है।
दूसरे उद्देशक में भगवान महावीर की प्रथम शय्यातरा जयन्ती श्रमणोपासका द्वारा प्रभु जीव के भव्य - अभव्यादि अनेक विषयों पर चर्चा की गई है।
तीसरे उद्देशक में सात नरक पृथ्वियों के नाम, गोत्रादि का वर्णन किया गया है।
चौथे उद्देशक में दो परमाणुओं से लेकर दस परमाणुओं तक तथा संख्यात- असंख्यात एवं अनन्त परमाणु पुद्गलों के एकत्रित होने और भेदित होने का निरूपण किया गया है।
पाँचवें उद्देशक में प्राणातिपात आदि अठारह पाप स्थानों के पर्यायवाची पदों का एवं उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श का निरूपण किया गया है। इसके बाद औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियों, अवग्रह आदि चार, उत्थानादि पाँच, अष्टकर्म, षट् लेश्या, पंच शरीर, त्रियोग, सप्तम अवकाशान्तर से वैमानिकावास तक, पंचास्तिकाय, अतीतादिकाल एवं गर्भागत जीवन में वर्णादि की प्ररूपणा की गई है। इसके अलावा जीव का कर्मों के द्वारा मनुष्यादि अनेक रूपों को प्राप्त होने के विषय में भी समझाया गया है।
छठे उद्देशक में लोगों द्वारा राहु के विषय में भ्रान्त मान्यताओं का निराकरण करते हुए राहु देव की विभूति, शक्ति, उसके नाम, वर्ण, प्रकार आदि का, राहु द्वारा चन्द्रमा की ज्योत्सना को आच्छादित करने का, चन्द्र के शशि एवं सूर्य को आदित्य कहने का तथा चन्द्र एवं सूर्य के कामभोग जनित सुखों, आदि का वर्णन किया गया है।
गई है।
सातवें उद्देशक में इस चौदह राजलोक में व्याप्त परमाणु पुद्गल जितने आकाश प्रदेशों में जीव के जन्म-मरण से अस्पृष्ट न रहने का वर्णन अजाब्रज के दृष्टान्त द्वारा किया गया है। इसके बाद रत्नप्रभा से लेकर अनुत्तर विमान के आवासों
अनेक अथवा अनन्त बार तथा एक व सर्व
जीवों की अपेक्षा से माता आदि रूप में अनेक अथवा अनन्त बार उत्पन्न होने की विवेचना की
बारहवाँ शतक : प्रथम उद्देशक
Twelfth Shatak: First Lesson
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(223)
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