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________________ 855555555555555555555555555555555555558 + that religion. O Sudarshan! What you are doing at present is the right 5 thing. That is why it is said that these Palyopam and Sagaropam get diminished or reduced. ५९. तए णं तस्स सुदंसणस्स सेट्ठिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढें ॐ सोच्चा निसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं, तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स म सण्णीपुव्वजाईसरणे समुप्पन्ने, एयमटुं सम्मं अभिसमेइ। [५९] तदोपरान्त श्रमण भगवान महावीर से यह बात (धर्मफल-सूचक) सुनकर और हृदय + में धारण कर सुदर्शन सेठ को शुभ अध्यवसाय, शुभ परिणाम और विशुद्ध होती हुई लेश्याओं से ॐ तदावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ और ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करते हुए संज्ञीपूर्व के जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे वह (भगवान द्वारा कहे गए) इस अर्थ (अपने पूर्व भव की म बात) को सम्यक् रूप से जानने लगा। 59. After hearing and understanding these words from Shraman 4. Bhagavan Mahavir, merchant Sudarshan underwent the process of 4 destruction-cum-pacification of related veiling karmas through noble endeavour, noble thoughts and gradual purification of soul complexions 4 (leshyas). Finally he gained sentient knowledge of his past births 41 (Jatismaran jnana) and he rightly understood the meaning of what was said (by Bhagavan Mahavir). ६०. तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणेणं भयवया महावीरेणं संभारियपुव्वभवे # दुगुणाणीयसडसंवेगे आणंदसुपुण्णनयणे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं 卐 करेइ, आ. क. २ वंदइ नमसइ, वं. २ एवं वयासी-एवमेयं भंते! जाव से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कटु उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ सेसं जहा उसभदत्तस्स (स. ९ उ. ३३) जाव म सव्वदुक्खप्पहीणे, नवरं चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, बहुपडिपुण्णाई दुवालस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ। सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति.। ॥ एक्कारसमे सए एक्कारसमो उद्देसो समत्तो॥ [६०] (जातिस्मरण ज्ञान होने पर) श्रमण भगवान महावीर द्वारा पूर्वभव का स्मरण करा ॐ देने से सुदर्शन श्रेष्ठी को दुगुनी श्रद्धा और संवेग उत्पन्न हुआ। उसके नेत्र आनन्दाश्रुओं से भर भी गए। इसके बाद वह श्रमण भगवान महावीर स्वामी को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा एवं ॐ वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोला- भगवन् ! यावत् आप जैसा कहते हैं, वैसा ही है, सत्य ॥ में है, यथार्थ है। इस प्रकार कहकर सुदर्शन सेठ उत्तर-पूर्व दिशा में गया, इत्यादि अवशिष्ट सारा की ग्यारहवाँशतक : ग्यारहवाँ उद्देशक (207) Eleventh Shatak: Eleventh Lesson 05555555555555555555555555555555555555
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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