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हम तुम्हें क्या दें ? तुम्हारे लिए हम क्या करें ? इत्यादि वर्णन (श. ९, उ. ३३ में कथित ) जमालि
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के समान जानना चाहिए; यावत् महाबल कुमार ने धर्मघोष अनगार से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। 56. Then King Bal called his attendants and gave instructions, like the coronation of Shivabhadra (Chapter-11, lesson- 9 ). Regarding coronation of prince Mahabal, the same description should be repeated here... and so on up to... King Bal concluded the coronation ceremony, joining palms felicitated prince Mahabal with hails of victory, and said— “Son! Tell me what should I give you ? What can I do for you ? The description should follow the pattern of Jamali (Chapter-9, Lesson-33)... and so on up to... prince Mahabal got initiated by ascetic Dharmaghosh. महाबल अनगार का अध्ययन, तपस्या, समाधिमरण एवं स्वर्गलोक प्राप्ति STUDY, AUSTERITIES, DEATH AND REINCARNATION OF ASCETIC MAHABAL
५७. तए णं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाइयाइं चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाइं दुवालस वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, बहु. पा. २ मासियाए संहार सहिं भत्ताइं अणसणाए. आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा
उड्डुं चंदिमसूरिय जहा अम्मडो जाव बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं महब्बलस्स वि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता |
[५७] दीक्षा ग्रहण के पश्चात् महाबल अनगार ने धर्मघोष अनगार के पास सामायिक आदि चौदह पूर्वों का अध्ययन किया तथा उपवास (चतुर्थभक्त), बेला (छट्ठ), तेला (अट्ठम) आदि बहुत-से विचित्र तप:कर्मों से आत्मा को भावित करते हुए पूरे बारह वर्ष तक श्रमण-पर्याय का पालन किया और अन्त में मासिक संलेखना से साठ भक्त अनशन का छेदन कर आलोचनाप्रतिक्रमण ऊपर
बहुत दूर, अम्बड़ के समान यावत् ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ कितने ही 5
देवों की दस सागरोपम की स्थिति कही गई है। तदानुसार महाबल देव की भी दस सागरोपम की स्थिति कही गई है।
कर समाधिपूर्वक काल के अवसर पर काल करके ऊर्ध्वलोक में चन्द्र और सूर्य से भी
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57. After getting initiated, ascetic Mahabal studied fourteen Purvas (subtle canons) including Saamaayik. He observed the ascetic conduct for twelve years enkindling his soul by observing various rigorous austerities including fasting for one, two, and three days. In the end he took the ultimate vow of a month long fast and breathed his last in ग्यारहवाँ शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक
(205) Eleventh Shatak: Eleventh Lesson
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