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(7) one's own body. Installing these seven things he offered honey, ॐ butter-oil, and rice into the pyre and offered sacrifice with the urn. Het
performed the daily yajna and worshipped guests (offered food to guests). At last he himself accepted food.
१३. तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से ॐ सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, आ. प. २ वागल.
एवं जहा-पढमपारणगं, नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेइ। दाहिणाए दिसाए जमे महाराया है पत्थाणे पत्थियं., सेसं तं चेव जाव आहारमाहारेइ। 卐 [१३] तदनन्तर उन शिवराजर्षि ने दूसरा बेला (छट्ठक्खमण) अंगीकार किया और दूसरे #बेले के पारणे के दिन शिवराजर्षि आतापना भूमि से नीचे उतरे, वल्कल के वस्त्र पहने, यावत् म प्रथम पारणे की जो विधि की थी, उसी के अनुसार दूसरे पारणे में भी किया। विशेषता यह है कि में दूसरे पारणे के दिन दक्षिण दिशा की पूजा की। 'हे दक्षिण दिशा के लोकपाल यम महाराज! है परलोक साधना में प्रस्थित मुझ शिवराजर्षि की रक्षा करें', आदि सब उपरोक्तवत् जानना चाहिए; 卐 यावत् अतिथि की पूजा करके फिर उसने स्वयं आहार किया।
. 13. Saint-king Shiva then commenced his second two day fast. To break his second fast Saint-king Shiva stepped down from the heat
mortification arena, put on his bark-garments... and so on up to... and broke the second two days fast following the aforesaid procedure. The
only change being that this time he worshipped southern direction and 5 uttered—“O honoured Yama, the guardian angel of the south, please
protect me, Saint-king Shiva, on the spiritual path... as aforesaid... and
so on up to... worshipped guests (offered food to guests) and at last he 'i himself accepted food.
१४. तए णं से सिवे रायरिसी तच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से म सिवे रायरिसी. सेसं तं चेव, नवरं पच्चत्थिमं दिसं पोक्खेइ। पच्चत्थिमाए दिसाए वरुणे ॐ महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खतु सिवं. सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा # आहारमाहारेइ। म [१४] तदनन्तर उन शिव राजर्षि ने तृतीय बेला अंगीकार किया। उसके पारणे के दिन ॐ शिवराजर्षि ने पूर्वोक्त सारी विधि की। इसमें विशेषता यह है कि पश्चिम दिशा की पूजा की और
प्रार्थना की-हे पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण महाराज! परलोक-साधना-मार्ग में प्रस्थित मुझ म शिवराजर्षि की रक्षा करें, आदि सब पूर्ववत् जानना चाहिये। यावत् स्वयं आहार किया।
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| भगवती सूत्र (४)
(122)
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Bhagavati Sutra (4)