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बैठकर दायां जानु (घुटना ) भूमि पर रखकर तथा बायां जानु ऊंचा रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर प्रणिपात सूत्र पढ़ा जाता है।
Procedure: The meditation is completed by uttering obeisance to Arihants. Thereafter one stands, and verbally recites Chatur-vinishti stav. Thereafter he sits on the ground keeping his right knee touching the ground and the left knee lifted upwards and with folded hands utters Pranipat Sutra.
प्रणिपात सूत्र
rasi अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरीयाणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंत - चक्कवट्टीणं, दीवोत्ताणं-सरण-गइपइट्ठाणं, अप्पडिहय-वरनाण- दंसणधराणं, वियट्टछउमाणं, जिणाणं जावयाणं, तिण्णाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहियाणं, मुत्ताणं मोयगाणं, सव्वण्णूणं, सव्वदरिसीणं, सिवमयल-मरुअ-मणंत-मक्खय मव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगई नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जियभयाणं ।
भावार्थ : राग-द्वेष रूपी शत्रुओं का हनन करने वाले अरिहन्तों- भगवन्तों को नमस्कार हो। (आगे के पदों में अरिहन्तों की महिमाएं - विशेषताएं बताई गई हैं -)
वे अरिहन्त भगवान् धर्म की आदि करने वाले हैं, चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करने वाले हैं एवं स्वयं ही संबोधि को प्राप्त करने वाले हैं।
वे पुरुषों में उत्तम हैं, पुरुषों में सिंह के समान हैं, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक (श्वेत कमल) के समान हैं तथा पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान हैं।
वे लोक में उत्तम हैं, लोक के स्वामी हैं, लोक का हित करने वाले हैं, लोक में दीपक के समान हैं तथा लोक में ज्ञान का उद्योत (प्रकाश) करने वाले हैं।
वे अभयदान देने वाले हैं, ज्ञान रूपी चक्षु देने वाले हैं, धर्म-मार्ग देने वाले हैं, शरण देने वाले हैं, संयम रूपी जीवन देने वाले हैं तथा बोधि बीज का दान देने वाले हैं।
प्रथम अध्ययन : सामायिक
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Avashyak Sutra