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________________ Psaksksksksksksksksksksksksistealinsakskskseakisaksakskskskelesdeskskskskskskskskskskskskskskaree प्रथम अध्ययन : सामायिक आमुखः ___ आवश्यक सूत्र के छह अध्ययनों अथवा आवश्यकों में सामायिक प्रथम आवश्यक है। सामायिक आध्यात्मिक साधना के प्रासाद का न केवल प्रवेश-द्वार है बल्कि उसका धरातल और शिखर भी है। सामायिक से ही साधना की शुरुआत होती है और सामायिक की परिपक्वता पर ही साधना पूर्ण होती है। अध्यात्म के शेष नियमोपनियम सामायिक के ही पोषक हैं। सामायिक है तो सभी नियमोपनियम सार्थक हैं। सामायिक नहीं है तो सभी नियमोपनियम, सभी जप और तप व्यर्थ हैं, शव-शृंगार के समान हैं। सामायिक का अर्थ है-समता भाव। सुख-दुख, हानि-लाभ, प्रशंसा-निन्दा, संपन्नता-विपन्नता, जन्म-मरण प्रत्येक स्थिति में समभाव धारण करना सामायिक है। गीता में इसे ही समत्व योग कहा है। भेद-विज्ञान का धरातल सामायिक ही है। मैं अलग हूं, पदार्थ अलग है, पदार्थ का स्वभाव बनना, बिगड़ना और नष्ट होना है। 'मैं' यानि आत्मतत्व अजर, अमर, अखण्ड और शाश्वत है। ज्ञान-दर्शन और आनन्द मेरा शाश्वत स्वभाव है। उक्त भावों में रमण करने का नाम ही सामायिक है। श्रमण, सामायिक चारित्र को अंगीकार करके जीवन-पर्यंत उसमें रमण करता है। सामायिक की परिपक्वता के लिए ही वह मूल और उत्तरगुणों की आराधना करता है। सामायिक के पोषक मूल और उत्तर गुणों में प्रमादवश अतिचार लगते हैं तो वह आवश्यक की आराधना द्वारा उनको आत्मा से पृथक् करता है। आवश्यक की आराधना वह सामायिक की आराधना से प्रारंभ करता है। क्योंकि सामायिक की पुष्टि और परिपक्वता से ही सिद्धि प्राप्त होती है। सामायिक चौदह पूर्वो का अर्थपिण्ड अर्थात् सारतत्व है। Presetastessistasistakestastratoresdesktorsdecadesdes आवश्यक सूत्र //1// Ist Chp. : Samayik
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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