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सामायिक के 32 दोष
सामायिक एक शुभ अनुष्ठान है। उससे आत्मा की शुद्धि होती है। आत्मशुद्धि के इस अनुष्ठान की आराधना शास्त्र में कहे गए बत्तीस दोषों से मुक्त रहकर करनी चाहिए।
साधक, मन-वचन एवं काय - इन तीन योगों का स्वामी है। इन तीनों योगों के चांचल्य से दोषों की उत्पत्ति की संभावना रहती है। शास्त्र में मन के दस, वचन के दस एवं काय के बारह - ऐसे कुल बत्तीस दोषों की गणना की गई है। बत्तीस दोषों का स्वरूप इस प्रकार हैThirty Two Faults Relating to Samayik
Samayik is a good spiritual practice. It purifies the soul. This practice of selfpurification should be done in such a manner that one does not commit any one of the thirty two faults mentioned in scriptures.
The practitioner is the master of his mind, speech and action. The faults may arise only when there is any instability in him. In scriptures ten faults relating to mind, ten relating to speech and twelve relating to action have been mentioned. The nature of these thirty two faults is as under —
मन के 10 दोष
अविवेग- जसोकित्ती, लाभत्थी गव्व-भय- नियाणत्थी । संसय - रोस - अविणओ, अबहुमाण ए दोसा भणियव्वा ॥
(1) अविवेक - उचित - अनुचित का ध्यान न रखना। मन में कल्पना करना कि इस प्रकार से मुंह बांधकर बैठने से क्या लाभ ! सामायिक के स्वरूप को ठीक से नहीं जानना, आदि 'अविवेक' नामक दोष है।
( 2 ) यशोकीर्ति - सामायिक करने से लोक में मेरा सम्मान बढ़ेगा, लोग मुझे धर्मात्मा मानेंगे, मेरी कीर्ति बढ़ेगी आदि, इस प्रकार का विचार मन में रखकर सामायिक करना ।
( 3 ) लाभार्थ–सामायिक करने से अमुक व्यक्ति को व्यापार में बहुत लाभ हुआ है, मैं भी सामायिक करूं तो मुझे भी आर्थिक लाभ होगा। लाभ के लोभ में सामायिक करना लाभार्थ दोष है।
( 4 ) गर्व- मैं बहुत बड़ा धर्मात्मा हूं, मेरे समान शुद्ध सामायिक करने वाला अन्य नहीं है, इस प्रकार अहंकार भाव धारण करना गर्व दोष है।
श्रावक आवश्यक सूत्र
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