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श्रावक देव-देवी संबंधी मैथुन का दो करण - तीन योग से, तथा मनुष्य और तिर्यंच संबंधी मैथुन का एक करण और एक योग से त्याग करता है। मनुष्य और तिर्यंच संबंधी मैथुन सेवन से वह स्वयं विरत होता है, परन्तु अपनी संतानों से संबंधित एवं अपने स्वामीत्व के पशुओं से संबंधित मैथुन में उसकी मानसिक और वाचिक अनुमोदना सहज रूप से जुड़ी होती है। अपनी संतानों को त्याग हेतु वह प्रेरित तो कर सकता है परन्तु बलात् उन पर अंकुश नहीं लगा सकता। इसी प्रकार अपने अधीनस्थ पशुओं के संदर्भ में भी वह उनके मैथुन संबंधी कार्य-कलापों में निमित्त बनता है।
'काम संसार - वृद्धि का मूल कारण है' इस भगवद् वचन पर अटूट श्रद्धा रखने वाला श्रावक सदैव कामोन्मूलन के प्रति सचेत रहता है। कदाचित् प्रमादवश उसके व्रत में दोष उत्पन्न हो जाए तो प्रतिक्रमण के द्वारा वह उस दोष को दूर कर लेता है ।
Explanation: The desire for sexual activity arises due to deluding Karma. A shravak has a keen desire to attain salvation. So he cools down his desire for sex through discrimination and detachment. He enters in marital bondage in order to limit the instinct of sex. He remains contented throughout life with the woman to whom he is married.
A Shravak discards sex with gods and goddesses in three ways and in two forms and with human beings and animals in one way and in one form. He avoids sex with any human being or animal but his support or concurrence exists mentally and orally in sexual activities of the members of his family and in the animals belonging to him. He can inspire the members of his family to avoid sex like activities but cannot force them to avoid such activities. Similarly he is involved in sexual activities of the animals under his charge.
Sex is the basic factor of increasing the population. A shravak has firm faith in the word of the omniscient. So he is always vigilant in completely avoiding sex. In case due to any slackness, any minor fault occurs in practicing this vow, he removes the effect of it through pratikraman.
पंचम अणुव्रत : स्थूल परिग्रह परिमाण
पांचमूं अणुव्रत थूलाओ परिग्गहाओ - वेरमणं खित्तवत्थुनूं यथा- परिमाण, हिरण्णसोवण्णनूं यथा - परिमाण, धन-धाण्णनूं यथा परिमाण, दुप्पदचउप्पदनूं यथा - परिमाण, कूविय - धातुनूं यथा- परिमाण, ए यथा परिमाण कीधूं छे, ते उपरान्त चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण
Shravak Avashyak Sutra
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