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________________ तृतीय अणुव्रत : स्थूल अदत्तादान विरमण तीजा अणुव्रत-थूलाउ अदिन्नादाणाउ वेरमणं-1. खातर खणी, 2. गांठडी छोड़ी, 3. तालापडि कुंची, 4. वाट पाडी, 5. पडी वस्तु धणीयानी जाणी इत्यादिक मोटका अदत्तादाण सगा-सम्बंधी व्यापार-सम्बंधी तथा पडी निरधनी वस्तु ते उपरान्त मोटका अदत्तादाण लेवाना पच्चक्खाण, जावज्जीवाय दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, एहवा तीजा थूल अदत्तादाण विरमण व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउं, 1. तेणाहडे, 2. तक्करप्पउग्गे, 3. विरुद्ध रज्जाइकम्मे, 4. कूड तोले, कूड माणे, 5. तप्पडिरूवग ववहारे। जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। . ___भावार्थ : तृतीय अणुव्रत में स्थूल चोरी से निवृत्त होता हूं। किसी के घर में सेंध लगाकर चोरी की हो, गांठ कतर कर अथवा जेबतराशी के द्वारा किसी का धन चुराया हो, किसी के ताले पर कोई अन्य चाबी लगाकर द्रव्य हरण किया हो, किसी राह चलते को लूटा हो, मार्ग में पडी हई वस्त को उसके स्वामी का ज्ञान होते हए भी उठा कर अपना लिया हो, इस प्रकार की स्थूल चोरी से मैं पीछे हटता हूं। स्वजन-परिजन संबंधी एवं व्यापार संबंधी सूक्ष्म अदत्तादान * का मुझे आगार है तथा ऐसी वस्तु जिसका कोई स्वामी नहीं है अथवा जिसके स्वामी का मुझे ज्ञान नहीं है उसे ग्रहण करने का भी आगार। उपरोक्त आगारों के अतिरिक्त स्थूल चोरी का मैं जीवनभर के लिए दो करण-तीन योग से त्याग करता हूं। मैं मन से, वचन से एवं काय से स्थूल चोरी न स्वयं करूंगा एवं न ही चोरी करने के लिए किसी को प्रेरित करूंगा। तृतीय अणुव्रत के पांच अतिचार हैं जिन्हें जानना तो आवश्यक है पर उनका आचरण करना उचित नहीं है। वे पांच अतिचार इस प्रकार हैं-(1) चोरी की वस्तु लेना, (2) चोरों की सहायता करना, (3) राज्य के विरुद्ध काम करना, (4) कम-अधिक तोल-माप करना, एवं (5) अधिक मूल्य की वस्तु दिखाकर, उसके स्थान पर छलपूर्वक कम मूल्य की वस्तु दे देना। उक्त अतिचारों में से यदि किसी अतिचार से मेरा व्रत दूषित हुआ है तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो। Exposition: By accepting the third partial vow (Anuvrat) I undertake to avoid gross stealing. I may have broken into any house for stealing. I may have committed an act of pickpocketing. I may have opened the lock of any house with another key and committed theft. I may have robbed any traveller. I may have picked up any article lying on the way fully knowing who is its owner but kept it still with me. Now A श्रावक आवश्यक सूत्र // 233 // IVthChp.:Pratikraman A AAAAAAAAAAAAgargargappyrPARIYARAggerPAGAPAGAggappygangala
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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