SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ types of prohibited literatures that cause sin and in practicing any of the thirty causes, leading to accumulations of highly deluding karmas. I feel sorry in case I had deviated in believing thirty one qualities of the liberated one, I feel sorry in case I may not have properly practiced thirty two type of Yoga Samgreh and committed any one of thirty three deviations arising out of not showing proper regard to the senior monk. अरिहंताणं आसायणाए, सिद्धाणं आसायणाए, आयरियाणं आसायणाए, उवज्झायाणं आसायणाए, साहूणं आसायणाए, साहूणीणं आसायणाए, सावयाणं आसायणाए, सावियाणं आसायणाए, देवाणं आसायणाए, देवीणं आसायणाए, इहलोगस्स आसायणाए, परलोगस्स आसायणाए, केवलि - पण्णत्तस्स धम्मस्स आसायणाए, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स आसायणाए, सव्व पाणभूयजीवसत्ताणं आसायणाए, कालस्स आसायणाए, सुयस्स आसायणाए, सुयदेवयाए आसायणाए, वायणायरियस्स आसायणाए, जं वाइद्धं, वच्चा मेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं, पयहीणं, विणयहीणं, जोगहीणं, घोसहीणं, सुट्ठदिण्णं, दुट्टुपडिच्छियं, अकाले ओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाइए सज्झायं, सज्झाइये न सज्झायं, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । भावार्थ : तैंतीस आशातनाएं - (1) अरिहंतों की आशातना से, (2) सिद्धों की आशातना से, (3) आचार्यों की आशातना से, (4) उपाध्यायों की आशातना से, (5) साधुओं की शा से, (6) साध्वियों की आशातना से, (7) श्रावकों की आशातना से, (8) श्राविकाओं की आशातना से, (9) देवों की आशातना से, (10) देवियों की आशातना से, (11) इस लोक की आशातना से, (12) परलोक की आशातना से, (13) केवलि - प्रतिपादित धर्म की आशातना से, (14) देव, मनुष्य एवं असुरों सहित लोक की आशातना से, (15) समस्त प्राणी, भूत, जीव एवं सत्त्वों की आशातना से, (16) काल की आशातना से, ( 17 ) श्रुत की आशातना से, (18) श्रुतदेव की आशातना से, (19) वाचनाचार्य की आशातना से, (20) सूत्र पाठों को आगे-पीछे बोलने से, (21) एक सूत्र को दूसरे सूत्र के साथ मिलाकर पढ़ने से, (22) अक्षर छोड़ का पढ़ने से, (23) अक्षर बढ़ा कर पढ़ने से, (24) पद छोड़कर पढ़ने से, (25) विनय रहित होकर पढ़ने से, (26) उपयोगहीन होकर पढ़ने से, (27) उदात्तादि स्वरों से रहित पढ़ने से, (28) शिष्य की योग्यता से अधिक सूत्र पाठ पढ़ाने से, (29) बुरे भाव से ज्ञान ग्रहण करने से, (30) अकाल में स्वाध्याय करने से, (31) शास्त्रोक्त काल में स्वाध्याय न करने चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण Avashyak Sutra // 92 //
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy