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चित्र - परिचय
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Illustration No. 8
शय्या सूत्र
मर्यादा से अधिक सोना, पुनः पुनः निद्रा लेना, अविवेक से करवट बदलना, अतना से हाथ-पैर फैलाना-संकोचना, सोते हुए सूक्ष्म जीवों का ध्यान न रखना, अविवेक पूर्वक खांसना, शय्या के दोष कहना, अमर्यादित ढंग से छींकना - जंभाई लेना, बिना पूंजे शरीर को खुजलाना, स्वप्न में स्त्री आदि को देखकर आकुलव्याकुल होना, स्वप्न में आहारादि करना या वैसी कल्पना का उत्पन्न होना ये सभी निद्रा संबंधी दोष चित्रों में दर्शाए गए हैं। प्रतिक्रमण की बेला में मुनि उक्त दोषों का स्मरण करता है तथा उनसे पीछे लौटने की प्रतिज्ञा करता है ।
Sleeping (Bedding) Sutra
To sleep more than difined, to sleep frequently, to turn side. unwisely, to stretch and contract the hands carelessly, not to take care of subtle organism during sleep, coughing unwisely, to say the faults of bedding, yawning and sneezing in unrestraint manner, to scratch the body without using woolen broom, to be preplexed seeing a woman in dreams. to eat in dreams or to imagine likewise, all these faults regarding sleep have been illustrated in these pictures. At the time of repentance the ascetic remembers all these faults and pledges to withdraw from them.