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चतुर्विंशति स्तव सूत्र (चतुर्विंशति आवश्यक)
जिणे
कमल की भाँति रागद्वेष रूपी कीचडुसे ऊपर उठे हुये।
लोगस्स उज्जोयगरे
धम्म-तित्थयरे
अरिहंते
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कित्तइस्सं, चउवीसं
पि केवली
सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु
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चंदसु निम्मलयरा
आइच्चेसु अहियं पयासयरा
सागर-वर-गंभीरा
चित्र संख्या 4