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घर भोजन करने के बाद मणिबन्ध पर्यंत लिप्त हाथों को धोना यहाँ प्रायश्चित्त योग्य नहीं है तथा मल-मूत्रादि के प्रलेप युक्त पाँव आदि को धोकर साफ करना भी कल्प्य है।
8 ये सामान्य कारण हैं। इनके अतिरिक्त निष्कारण प्रक्षालन की प्रवृत्तियाँ निषिद्ध समझनी चाहिए। वे * प्रवृत्तियाँ बाकुशी प्रवृत्तियाँ कही जाती हैं, उन्हीं का इस सूत्र से प्रायश्चित्त समझना चाहिए।
Comments-In above mentioned aphorism No. 18, 19, 20 the expiation of the faults of the first, second and third full vows has been told. In alphorism No. 22, 23, 24 the expiation of the fault of fifth vow should be understood. Because bath the faults are of the celibacy, therefore, here the activity of a little bathing is an atonement.
After lunch to wash the hands upto wrist is not worthy of expiation. To clean the hands and legs smeared with urine etc is also not a transgression.
There are general causes. Besides the tendencies of washing without any purpose should be counted as prohibited. Such activities are stated an activities of "Bakushi” tendencies and the expiation should be comprehended of these activities through this sutra.
पैठ कृत्स्न चर्म धारण का प्रायश्चित्त
THE EXPIATION OF WEARING THE FULL LEATHER PIECE 42 22. जे भिक्खू कसिणाइंचम्माइंधरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ। X22. जो भिक्षु अखण्ड चर्म धारण करता है अथवा धारण करने वाले का समर्थन करता है। (उसे
लघुमासिक प्रायश्चित्त लेना होता है।) The ascetic who wears the piece of a full leather or supports the ones who wears so, a laghumasik expiation costs him. विवेचन-कसिण के चार भेद होते हैं1. सकल “कसिण"-अखण्ड पूर्ण चर्म।
2. प्रमाण “कसिण"-जूता आदि। ____ 3. वर्ण "कसिण"-उज्जवल (सुंदर वर्ण वाला) पाँचों वर्ण में से किसी एक वर्ण युक्त।
बंधण "कसिण"-आधा पाँव, पूरा पाँव, जंघा, घुटने, अंगुलियाँ आदि को बाँधने अथवा सुरक्षा अरे करने का चर्ममय उपकरण।
ये चारों कसिण साधु को नहीं कल्पते हैं। प्रस्तुत सूत्र में सकल कसिण का प्रायश्चित्त विधान है और शेष घटे तीन प्रकार के “कसिण चर्मों का प्रायश्चित्त विधान करना इस सूत्र का विषय नहीं है अर्थात् इनका प्रायश्चित्त घर गुरुमासिक आदि है। प्रस्तुत उद्देशक लघुमासिक प्रायश्चित्त का है।" घर फिर भी भाष्यकार ने सभी विकल्प कह कर उनके प्रायश्चित्त के प्रकारों का भी विस्तृत वर्णन किया है।
उसका पूर्ण परिशीलन करना प्रायश्चित्तदाता गीतार्थों के लिए उपयोगी है। किस आपवादिक परिस्थिति में औपग्रहिक उपकरण रूप में किन-किन चर्म-उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है, इसकी जानकारी भी भाष्य से करनी चाहिए।
द्वितीय उद्देशक
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Second Lesson