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द्वितीय उद्देशक
THE SECOND CHAPTER
प्राथमिकी INTRODUCTION
द्वितीय उद्देशक के प्रथम आठ सूत्रों में भिक्षु के काष्ठ दण्डयुक्त पादप्रोंछन के सम्बन्ध में चिंतन किया गया है। तत्पश्चात् सुगंधित पदार्थों को सूँघने, पदमार्ग, पानी निकालने की नाली, छींके के ढक्कन, चिलमिली, सुई आदि बनाने, कठोर भाषा बोलने, कृत्स्न चर्म व वस्त्र धारण करने, नित्य अग्रपिंड व दान पिंड लेने आदि का निषेध किया गया है। इस उद्देशक में भिक्षु के लिए जिन बातों का निषेध किया गया है यदि वह किसी कारणवश उन बातों पर अमल करता है तो उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त करने में आता है।
In the first eight sutras of the second chapter the contemplation regarding the Padprochhana with wooden staff has been done. After its description the prohibition of smelling the odour, to build the pavement, the drain, the cover of the overhead net needle etc. and uttering the harsh words to put on the complete cloth and leather has been mentioned. Whatever prohibitions for ascetic are imposed in this chapter if committed due to any special reason to be observed by him then a 'laghumasik' expiation comes to him.
दंडयुक्त पादप्रोंछन ग्रहण करने आदि का प्रायश्चित्त
ATONEMENT OF TAKING OVER THE DUST REMOVING PIECE OF CLOTH WITH THE STAFF (PADPROCHHANA)
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ ।
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हइ, गेण्हंतं वा साइज्जइ । जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं धरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ ।
1.
2.
3.
4.
5.
6.
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभुंजइ, परिभुंजंत वा साइज्जइ ।
7.
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ ।
8.
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं विसुयावेइ विसुयावेंतं वा साइज्जइ ।
1.
जो भिक्षु काष्ठदंडयुक्त "पादप्रोंछन" बनाता है अथवा बनाने वाले का समर्थन करता है। 2. जो भिक्षु काष्ठदंडयुक्त "पादप्रोंछन" ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का समर्थन करता है। भिक्षु काष्ठदंडयुक्त "पादपोंछन" धारण करता है अथवा धारण करने वाले का समर्थन करता है।
3.
द्वितीय उद्देशक
(31)
Second Lesson
जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं वियरइ, वियरेंतं वा साइज्जइ ।
जे भिक्खू दारुदंड्यं पायपुंछणं परिभाएंतं वा साइज्जइ ।