________________
पर 41. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता
आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं
अहीणमइरित्तं तेण परं अड्ढपंचमासा। * 42. अड्ढ-पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता सर
आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअठं सहेउं सकारणं हैर
अहीणमइरित्तं तेण परं पंचमासा। 43. पंच-मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता
आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअठं सहेउं सकारणं
अहीणमइरित्तं तेण परं अद्धछट्ठामासा। 44. अद्धछट्ठमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता रे
आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअठं सहेउं सकारणं अरे
अहीणमइरित्तं तेण परं छम्मासा। 36. डेढ मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगारं यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में
या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने वर
से दो मास की प्रस्थापना होती है। घर 37. दो मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में पूरे
या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने पर
से ढाई मास की प्रस्थापना होती है। 38. ढाई मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में पूर
या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने 8
से तीन मास की प्रस्थापना होती है। 38 39. तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में
या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे संयुक्त करने पर
से साढे तीन मास की प्रस्थापना होती है। पर 40. साढे तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में डू
मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके सर आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, जिसे रे संयुक्त करने से चार मास की प्रस्थापना होती है।
निशीथ सूत्र
(356)
Nishith Sutra