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________________ आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके घर बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 31. पंच मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में 2 मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके 8 आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके र बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 32. चातुर्मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके र आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके घर बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 2 33. तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में 3 मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके र बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 34. दो मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना र करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 35. मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में पूरे ___ या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः ४ दोष सेवन कर ले तो डेढ मास का प्रायश्चित्त आता है। 30. The ascetic who has accepted the expiation of six months duration if repents purposefully, with vested interest or with some reason in the beginning, in the middle or in the end, deserving fit for one months expiation then neither less nor more than the attribution of fortnight expiation comes, and if he commits any fault beyond it then an expiation of one and a half months comes. The ascetic who has accepted the expiation of five months expiation if repents purposefully, with vested interest, with some reasons in the beginning, in the middle or in the end deserving a months expiation then neither less nor more than the attribution of fortnight expiation comes, and if he commits any fault subsequently then an expiation of one and a half months comes. The ascetic who has accepted the expiation of Chaturmasi if repents purposefully, with vested interest or with some reasons in the beginning or in the middle or in the निशीथ सूत्र (354) Nishith Sutra
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
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