SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3. पीछे से प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, 4. पीछे से प्रतिसेवित दोष की पीछे से आलोचना की हो। 1. मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो। 2. मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो। 3. मायासहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो। 4. मायासहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो। इनमें से किसी प्रकार के भंग से आलोचना करने पर सर्व स्वकृत अपराध के प्रायश्चित्त को रे संयुक्त करके पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में सम्मिलित कर देना चाहिए। जो इस प्रायश्चित्त रूप परिहार तप में स्थापित होकर वहन करते हुए भी पुन: किसी प्रकार की रे प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में आरोपित कर देना चाहिए। 16. जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक-इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे माया-सहित आलोचना करने पर आसेवित प्रतिसेवना के अनुसार प्रायश्चित्त रूप परिहार तप में स्थापित करके उनकी योग्य वैयावृत्य करनी चाहिए। यदि वह परिहार तप में स्थापित होने पर भी किसी प्रकार की प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में सम्मिलित कर देना चाहिए। 1. पूर्व में प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, 2. पूर्व में प्रतिसेवित दोष की पीछे आलोचना की हो, 3. पीछे से प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, 4. पीछे से प्रतिसेवित दोष की पीछे से आलोचना की हो। 1. मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो। 2. मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो। 3. मायासहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो। 4. मायासहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो। इनमें से किसी प्रकार के भंग से आलोचना करने पर सर्व स्वकृत अपराध के प्रायश्चित्त को * संयुक्त करके पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में सम्मिलित कर देना चाहिए। और जो इस प्रायश्चित्त रूप परिहार तप में स्थापित होकर वहन करते हुए भी पुनः किसी प्रकार की पूरे प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में आरोपित कर देना चाहिए। घर 17. जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक-इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की अनेक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो घरे । बीसवाँ उद्देशक (345) Twentieth Lesson
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy