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________________ संध्याकाल में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF STUDYING OF SCRIPTURES AT JUNCTURES OF TIME 8. जे भिक्खू चउहिं संझाहिं सज्झायं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ । तं जहा— 1. पुव्वाए संझाए, 2. पच्छिमार संझाए, 3. अवरण्हे, 4. अड्ढरत्ते । 8. जो भिक्षु प्रात: काल संध्या में, सायंकाल संध्या में, मध्याह्न में और अर्धरात्रि में इन चार संध्याओं में स्वाध्याय करता है अथवा स्वाध्याय करने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) 8. The ascetic who does studying of scriptures at dawn, at evening, at noon and at mid night in these four junctures of time or supports the ones who does so, a laghuChaumasi expiation comes to him. विवेचन - संध्याएँ चार कही गई हैं, यथा 1. पूर्वसंध्या - सूर्योदय के समय जो पूर्व दिशा में लालिमा रहती है, उसे 'पूर्वसंध्या' कहा जाता है। यह रात्रि और दिवस का संधिकाल है। इसमें सूर्योदय के पूर्व अधिक समय लालिमा रहती है और सूर्योदय के बाद अल्प समय रहती है। यह समय लगभग एक मुहूर्त्त का होता है। 2. पश्चिम संध्या - पूर्व संध्या के समान ही पश्चिम संध्या सूर्यास्त के समय समझनी चाहिए। इसमें सूर्यास्त के पूर्व लाल दिशा कम समय रहती है और सूर्यास्त के बाद लाल दिशा अधिक समय तक रहती है। इस सम्पूर्ण लाल दिशा के काल को 'पश्चिम संध्या' कहा गया है। 3. अपराह्न-मध्याह्न-दिवस का मध्यकाल । जितने मुहूर्त्त का दिन हो उसके बीच का एक मुहूर्त्त समय मध्याह्न कहा जाता है। उसे ही सूत्र में 'अपराह्न ' कहा है। यह समय प्राय: बारह बजे से एक बजे के बीच में आता है। कभी-कभी कुछ पहले या पीछे भी हो सकता है। 4. अड्ढरत - रात्रि के मध्यकाल को 'अर्द्ध रात्रि' कहा गया है। इसे 'अपराह्न ' के समान समझना चाहिए। दिवस और रात्रि का मध्यकाल लौकिक शास्त्र वाचन के लिए भी अयोग्य काल माना जाता है। शेष दोनों संध्याकालको आगम में प्रतिक्रमण और शय्या उपधि के प्रतिलेखन करने का समय कहा है, इस समय में स्वाध्याय करने पर इन आवश्यक क्रियाओं के समय का अतिक्रमण होता है । ये चारों काल व्यन्तर देवों के भ्रमण करने के हैं । अतः किसी प्रकार का प्रमाद होने पर उनके द्वारा उपद्रव होना सम्भव रहता है। लौकिक में भी प्रात:सायं भजन स्मरण के और मध्याह्न एवं अर्द्ध रात्रि प्रेतात्माओं के भ्रमण के माने जाते हैं। इन चार कालों में भिक्षु को स्वाध्याय न करने से कुछ विश्रान्ति भी मिल जाती है। इन चारों संध्याओ का काल स्थूल रूप में इस प्रकार है 1. पूर्व संध्या - सूर्योदय से 24 मिनिट पहले और 24 मिनिट बाद अथवा 36 मिनिट पूर्व और 12 मिनिट बाद । 2. पश्चात् संध्या - सूर्यास्त से 24 मिनिट पहले और 24 मिनिट बाद अथवा 12 मिनिट पूर्व और 36 मिनिट बाद । निशीथ सूत्र (320) Nishith Sutra
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
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