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1. Clothes of daily use.
2. Clothes to be used at bathing time.
3. The clothes to be worn at the time of any ceremony.
4. The clothes worthy of wearing while going to kings court.
The expiation of a lagu-chaumasi comes to him.
विवेचन - सूत्र में वस्त्र की प्राप्ति दो प्रकार से कही गई है
1. भिक्षु के द्वारा याचना किए जाने पर कि "हे गृहपति, आपके पास हमारे लिए कल्पनीय कोई वस्त्र है?"
2. भिक्षु के पूछे बिना ही गृहस्थ स्वतः निमंत्रण करे कि "हे मुनि, आपको कोई वस्त्र की आवश्यकता हो तो मेरे पास अमुक वस्त्र है, कृपया लीजिए।"
इस प्रकार के 'याचित - वस्त्र याचना से प्राप्त' और 'निमंत्रित वस्त्र = निमंत्रण पूर्वक प्राप्त वस्त्र' कहे
गए हैं।
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वस्त्र गृहस्थ के किन-किन उपयोग में आने वाले होते हैं, इसका इस सूत्र में चार प्रकारों में कथन किया गया है। इन चार प्रकारों में गृहस्थ के सभी वस्त्रों का समावेश हो जाता है।
1. नित्य उपयोग में आने वाला - बिछाने, पहनने ओढ़ने आदि किसी भी काम में आने वाले वस्त्रों का इसमें समावेश किया गया है। उसमें से जो भिक्षु के लिए कल्पनीय और उपयोगी हों उन्हें वह ग्रहण कर सकता है।
2. स्नान के समय - इसका समावेश प्रथम प्रकार में हो सकता है, फिर भी कुछ समय के लिए ही वे वस्त्र काम में लेकर रख दिए जाते हैं, दिन भर नहीं पहने जाते । अथवा स्नान भी कोई सदा न करके कभी-कभी कर सकता है, अत: इन्हें अलग सूचित किया है। इसके साथ चूर्णिकार ने मंदिर जाते समय पहने जाने वाले वस्त्र भी ग्रहण किए हैं। वे भी अल्प समय पहनकर रख दिए जाते हैं। अत: इस विकल्प में अन्य भी अल्प समय में उपयोग में आने वाले वस्त्रों को समझ लेना चाहिए।
3. महोत्सव-त्यौहार, उत्सव, मेले, विवाह आदि विशेष प्रसंगों पर उपयोग में लिए जाने वाले वस्त्रों को तीसरे भेद में कहा है।
4. राजसभा - राजा की सभा में या कहीं भी राजा के पास जाने के समय पहने जाने वाले वस्त्रों को चौथे भेद में कहा गया है।
इनमें से किसी प्रकार के वस्त्र को ग्रहण करना हो तो भिक्षु उस वस्त्र के विषय में पूछताछ करके यह जानकारी कर ले कि यह वस्त्र किसी भी उद्गम आदि दोष से युक्त तो नहीं है? ऐसी जानकारी करके ही उसे ग्रहण करे ।
Comments Obtaining the clothes has been said of two types in these aphorisms. 1. When the ascetic asks the householder, "Have you any cloth for my use?"
2. When the householder requests the ascetic, at his own will, without asked for the clothes, Hey Muni! if you are in need of any kind of cloth then the required cloth is with me, Please accept it.
पन्द्रहवाँ उद्देशक
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Fifteenth Lesson