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________________ बारहवाँ उद्देशक THE TWELFTH CHAPTER प्राथमिकी INTRODUCTION इस उद्देशक में त्रस प्राणी बंधन, मुक्ति, प्रत्याख्यान भंग आदि का वर्णन है। जो श्रमण रोमयुक्त र चर्म रखता है, गृहस्थ के वस्त्राच्छादित तृणपीठ पर बैठता है, साध्वी की चादर अन्यतीर्थिक या और गृहस्थादि से सिलवाता है, पृथ्वीकायादि पाँच स्थावरों के जीवों की विराधना करता है, गृहस्थ के और पात्र, वस्त्र व शय्या का उपयोग करता है, खेत-सुन्दर नगर-ग्राम-काष्ठ कर्म आदि का निरीक्षण परे करता है, अश्वयुद्ध आदि में सम्मिलित होता है, गंगा आदि पाँच बड़ी नदियों को महीने में दो अथवा परे तीन बार पार करता है आदि अन्य निषिद्ध प्रवृत्तियाँ जो प्रस्तुत उद्देशक में बतायी गई हैं, उनको घर करता है या उनका समर्थन करता है उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। In this chapter the description of untying the cattle tied with thither, breaking the accepted vows has been done. The Shramans who keeps leather, sits on the straw seat covered with the householder donated cloth, gets the shawls of a nun stitched by the non-believer or a householder, hurts the five types of states earthbodie like living beings, uses the bed, clothes and utensils of a householder inspects the pond, beautiful प्रार village in towns wooden work etc. takes part in horse battle, crosses the great five rivers like Ganga etc. more than two or three times, or supports the one who does so, सर a laghu-chaturmasik expiation comes to him. त्रस प्राणियों के बंधन-विमोचन का प्रायश्चित्त THE REPENTANCE OF CAPTIVATING AND RELEASING THE MOVEABLE LIVING BEINGS 1. जे भिक्खू कोलुण-वडियाए अण्णयरं तसपाणजायं, 1. तण-पासएण वा, 2. मुंज-पासएण वा, 3. कट्ठ-पासएण वा,4. चम्म-पासएणवा, 5. वेत्त-पासएण वा, 6. रज्जू-पासएण वा, सर 7. सुत्त-पासएण वा बंधइ, बंधतं वा साइज्जइ। घर 2. जे भिक्खू कोलुण-वडियाए अण्णयरंतसपाणजायं तण-पासएण वा जाव सुत्त-पासएण वा 4 बद्धेलयं मुंचइ मुंचतं वा साइज्जइ। 1. जो भिक्षु करूणा भाव से किसी त्रस प्राणी को 1. तृण के पाश से, 2. मुजं के पाश से, 3. काष्ठ 2 के पाश से, 4. चर्म के पाश से, 5. वेत्र के पाश से, 6. रज्जू के पाश से, 7. सूत्र के पास से रे बाँधता है अथवा बाँधने वाले का समर्थन करता है। पर 2. जो भिक्षु करूणा भाव से किसी तृण-पाश से यावत् सूत्र-पाश से बँधे हुए त्रस प्राणी को खोलता तर है अथवा खोलने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) | निशीथ सूत्र .(208) Nishith Sutra
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
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