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43.
The ascetic who keeps Rajoharana of more than allowed size or supports the ones who keeps so. The ascetic who makes the strings of the Rajoharana very light or supports the
ones who makes so. 45. The ascetic who ties the Rajoharana with "Kandusang knot” and supports the
ones who does so. 46. The ascetic who ties the Rajoharana carelessly or supports the ones who does so. 47. The ascetic who ties with single knot the Rajoharan or support the ones who does so. 48. The ascetic who ties the Rajhoharana with three knots or supports the ones who
does so. 49. The ascetic who keeps the undeserving Rajoharan and supports the ones who
keeps the similar. 50. The ascetic who keeps the Rajoharana at the distance of body's measurement or
supports the ones who keeps so.
The ascetic who sits on the Rajoharana or supports the ones who sits so. 52. The ascetic who keeps the Rajoharana under his head while sleeping or supports
the ones who keeps so, laghu-masikexpiation comes to him. .
विवेचन-"रजोहरण" शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से फलियों के समूह भाग की अपेक्षा से कहा गया है। घटे क्योंकि अधिक प्रमाण, सूक्ष्म फलियाँ, अधिष्ठित होना, सिरहाने रखना आदि कार्यों का सम्बन्ध उनके लिए ही संगत होता है।
अइरेगपमाणं-फलियों के समूह का घेरा प्रमाणोपेत होना चाहिए। रजोहरण के द्वारा एक बार में पूँजी हुई और भूमि में अपना पाँव आ सके, इतना प्रमाण फलियों के समूह का होना चाहिए। व्याख्याओं में 32 अंगुल का निर्देश है मिलता है, उसे फलियों के घेराव के लिए समझना सुसंगत है। 32 अंगुल के घेराव की फलियों का समूह कम से घटे कम 16 अंगुल चौड़ी भूमि का प्रमार्जन करता है। पांव की लम्बाई 12 से 15 अंगुल तक की प्रायः होती है। जिसमें 8 पूंजकर चलने का कार्य सम्यक् प्रकार से सम्पन्न हो सकता है। अतः रजोहरण का प्रमाण उसके घेराव की अपेक्षा से समझना चाहिए। 32 अंगुल का प्रमाण रजोहरण की डंडी के विषय में नहीं समझना चाहिए।
9 वर्ष का साधु अढाई फुट की अवगाहना वाला हो सकता है और 20 वर्ष का साधु 6 फुट का भी हो सकता है। सबके लिए डंडी की लम्बाई 32 अंगुल का नियम उपयुक्त नहीं है। 32 अंगुल का घेराव भी एकांतिक न समझकर उत्कृष्ट सीमा का समझ सकते हैं।
सूत्रपाठ से तो इतना ही भाव समझना पर्याप्त है कि शरीर तथा पांव की लम्बाई के अनुसार पूंजने का कार्य सम्यक् प्रकार से सम्पन्न हो सके, उतना घेराव या लम्बाई का रजोहरण होना चाहिए। उससे अधिक घेराव अथवा लम्बाई अनावश्यक होने से वह प्रमाणातिरिक्त रजोहरण कहलाता है। उपलक्षण से प्रमाण से कम करना भी दोष व प्रायश्चित्त योग्य समझ लेना चाहिए।
Comments—The word "Rajoharana” has been used mainly for the bundle of the strings.
AK
निशीथ सूत्र
(124)
Nishith Sutra