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39. The ascetic who says that the “sambhoga pratiyika” activity is not attracted or supports the ones who says so, a laghu-masik expiation comes to him.
विवेचन -
" एकत्र भोजनं संभोगः, तत्प्रत्यया क्रिया-कर्मबंधः, नास्तीति, जो एवं भाषते तस्स मास लहुं। एस सुत्तत्थो।"
जिसके साथ में आहार आदि का संभोग होता है ऐसा कोई भी सांभोगिक साधु आहारादि की गवेषणा में कोई दोष लगाता है तो उस वस्तु का उपयोग करने वालों को भी गवेषणा दोष संबंधी क्रिया अर्थात् कर्मबंध व प्रायश्चित्त आता है।
अतः संभोग प्रत्ययिक क्रिया के संबंध में गलत धारणा तथा प्ररूपणा नहीं करनी चाहिए। संभोग-विसंभोग संबंधी विस्तृत जानकारी के लिए भाष्य का अध्ययन करना आवश्यक है। सामान्य जानकारी के लिए वृहत्कल्प उ.4, सूत्र 23 का विवेचन देखें।
Comments-"Ekatra bhojanam sambhogah, tatprayaya kriya karambandhah, Nastiti, jo evam evan tass maas lahum Ass Suttatho".
In whose company taking food is permitted (Sambhoga) if such a sambhogika ascetic commits any fault while accepting food then the expiation of bondage related to food accepting related fault comes even to the ascetic who uses the accepted items.
Therefore, the wrong conception and wrong description in respect of the activity of sambhoga pratyayka should not be done. For comprehensive perception related to Sambhoga-Visambhoga the study of Bhashya is necessary and for general perception see the comments mentioned at sutra no. 23 of chapter-4 of Prachatkalpa.
धारण करने योग्य उपधि के परित्याग का प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF RENOUNCING THE ARTICLE WORTHY OF HOLDING
40. जे भिक्खू लाउय- पायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा, अलं थिरं ध्रुवं धारणिज्जं परिभिदिय- परिभदिय परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ ।
41. जे भिक्खू वत्थं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा, अलं थिरं ध्रुवं धारणिज्जं पलिछिंदियपलिछिंदिय परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ ।
42. जे भिक्खू दंडगं वा, लट्ठियं वा, अवलेहणियं वा, वेणुसूइं वा पलिभंजिय-पलिभंजिय परिट्ठवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ ।
41. जो भिक्षु तुंबपात्र, काष्ठ पात्र या मिट्टी के पात्र को जो परिपूर्ण (प्रमाणयुक्त) हैं, दृढ़ (कार्य के योग्य) हैं, रखने योग्य हैं और कल्पनीय हैं, उन्हें टुकड़े कर करके परठता है अथवा परठने वाले का समर्थन करता है।
41. जो भिक्षु परिपूर्ण, दृढ़, रखने योग्य व कल्पनीय वस्त्र, कंबल या पादप्रोंछन को खंड-खंड करके परठता है अथवा परठने वाले का समर्थन करता है।
42. जो भिक्षु दंड, लाठी, अवलेखनिका या बाँस की सूई को तोड़-तोड़कर परठता है अथवा परठने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है ।)
निशीथ सूत्र..
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Nishith Sutra