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________________ वीणा बनाने व बजाने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF MAKING AND PLAYING THE VIOLIN 33. जे भिक्खू मुंह-वीणियं वा, दंत-वीणियं वा, ओट्ठ-वीणियं वा, णासा-वीणियं वा, 4 कक्ख-वीणियं वा, हत्थ-वीणियं वा, णह-वीणियं वा, पत्त-वीणियं वा, फल-वीणियं वा, 8 बीय-वीणियं वा, हरिय-वीणियं वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। 34. जे भिक्खू मुंह-वीणियं वा जाव हरिय-वीणियं वा वाएइ, वाएंतं वा साइज्जइ।। 35. जे भिक्खू अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि अणुद्दिण्णाइं सहाई उदीरेइ, उदीरेंत वा साइज्जइ। 33. जो भिक्षु मुँह, दाँत, ओष्ठ, नाक, कांख, हाथ, नख, पत्र, पुष्प, फल, बीज या हरी घास को वीणा जैसी ध्वनि निकालने या निकालने योग्य बनाता है अथवा बनाने वाले को समर्थन करता है। 34. जो भिक्षु मुख से यावत् हरी घास से वीणा बजाता है अथवा बजाने वाले का समर्थन करता है। 35. जो भिक्षु अन्य भी इसी प्रकार के अनुत्पन्न शब्दों को उत्पन्न करता है अथवा करने वाले का रे समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 33. The ascetic who makes sound us of instrument like violin from mouth, teeth, lips, nose, hands, nailsorwithleaves, fruits, seeds and green grass or supports the ones who makes so. 34. The ascetic who plays violin with mouth or with green grass etc or supports the ones who plays violin so. 35. The ascetic who produces such un-productive sound in other different ways or supports the ones who does so, a laghu-masik expiation comes to him. औदेशिक शय्या में प्रवेश करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF ENTERING INTO SPCIALLY PREPARED SHAYYA 36. जे भिक्खू "उद्देसियं-सेज्ज" अणुप्पविसइ, अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ। 37. जेभिक्खू"सपाहुडियंसेज्ज" अणुप्पविसइ, अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ। . 38. जे भिक्खू "सपरिकम्मंसेज्ज" अणुप्पविसइ, अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ। 36. जो भिक्षु औद्देशिक दोष युक्त (उद्दिष्ट) शय्या में प्रवेश करता है अथवा प्रवेश करने वाले का और समर्थन करता है। 37. जो भिक्षु सप्राभृतिक शय्या में प्रवेश करता है अथवा प्रवेश करने वाले का समर्थन करता है। 38. जो भिक्षु सपरिकर्म शय्या में प्रवेश करता है अथवा प्रवेश करने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 5. The ascetic who lives in a faulty oddeshika (Udishath) Upashraya or supports the ones who lives so. 37. The ascetic who resides in Saprabhratik Upashraya or supports the ones who resides so. निशीथ सूत्र (120) Nishith Sutra
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
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