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________________ नवकार की दार्शनिकता... (प्रस्तावना) विश्व के विविध धर्मों में लाखों करोड़ों मंत्र हैं। यहां तक कि... आयुर्वेद जैसे शरीर एवं रोग शास्त्र में भी सेंकड़ों किसम के मंत्र बताए गए हैं। जिन मंत्रों का प्रयोग करके सेंकड़ों रोग मिटाए जा सकते हैं। तंत्र शास्त्र में मंत्रों और तंत्रों के लाखों प्रयोग बताए गए हैं। हिन्दु धर्म में गायत्री मंत्र प्रसिद्ध एवं प्रचलित हैं। जैन धर्म में “नवकार महामंत्र" की सर्वोपरिता रही है। - प्रश्न यह उठता है कि मन्त्रों का अद्भव किस हेतु के आधार पर हुआ है? आप जानते ही हैं कि... मानव सभ्यता इस अनादि सृष्टि में अनन्त काल से है। जब सृष्टि ही अनादि अनन्त शाश्वत है, जो अनुत्पन्न-अविनाशी है तब फिर मानव के या किसी भी प्राणी के अस्तित्व की गणना करनी यह दिन में तारे गिनने जैसा या समुद्र की बुंदे गिनने जैसा निरर्थक - व्यर्थ प्रयास है। हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि मानव ने अपने दुःख संकटों को टालने, सुख समृद्धि को पाने के लिए भगवान और देवी-देवताओं के नामादि जोड़कर लाखों करोड़ों मन्त्रों का सर्जन एवं आविष्कार किया है। तथा इन मन्त्रों का जपस्मरण युगादि काल से करता ही आ रहा है। क्या मंत्र सिर्फ दुःख संकट निवारक ही है? या क्या आपत्ति-विघ्न विनाशक ही है? या क्या ये मंत्र सुख-समृद्धि प्रदाता ही है? ऐसे तो विषयों का वर्गीकरण करते हुए मंत्रों का विभाजन करते जाएं तो शायद सेंकड़ों विषयों वाले मंत्र मिल जाएंगे। रोग निवारक मंत्र भी है। शत्रु नाशक मंत्र भी है। मृत्यु निवारक मंत्र भी काफी है। संतानोत्पादक मंत्र भी हैं। ऐसा लगता है कि शायद ही संसार का कोई ऐसा विषय होगा जिस विषय के मन्त्र न हों। वशीकरण मंत्र बताए तो दूसरी तरफ उच्चाटन विद्या भी बताई। आकाशगामिनी विद्या के मन्त्र भी बताए तो भौम-अन्तरिक्ष के मन्त्रों में भी कोई कमी नहीं दिखाई देती है। शायद वेदों को मंत्रों का खजाना ही कहा जा सकता है। मंत्र शास्त्रों पर विश्वकोष बने जी हां, एक काल ऐसा था जबकि मंत्रों की ही बोलबाला थी। हर कार्य लोग मंत्रों द्वारा ही कर लेते हैं। यहां तक कि अग्नि प्रज्वलन भी मंत्रों से हो जाता था। तथा वर्षा भी मन्त्रों से संभव थी। और व्यक्ति मंत्र स्मरण करके अदृश्य भी हो जाता था। वह मंत्र युग कहलाता था। फिर कुछ काल तंत्र युग का भी आया। जहां तंत्र के तान्त्रिक प्रयोग
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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