SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं। क्योंकि यही धर्म के क्षेत्र हैं । ढाई द्वीप के मानचित्र में देखने से पता लग जाएगा । ढाई द्वीप में प्रथम जंबुद्वीप मे, दूसरे धातकी खंड में और तीसरे पुष्करार्ध द्वीप में कुल मिलाकर १५ क्षेत्र | जंबुद्वीप में एक भरत क्षेत्र, एक ऐरावत क्षेत्र तथा एक महाविदेह क्षेत्र - इस प्रकार कुल ३ कर्मभूमि के क्षेत्र हैं । धातकी खंड और पुष्करार्ध क्षेत्र में कुल दो भरत, दो ऐरावत तथा दो महाविदेह क्षेत्र हैं ऐसे ५ भरत, ५ ऐरावत और ५ महाविदेह क्षेत्र कुल मिलाकर १५ कर्मभूमि के क्षेत्र है । जहाँ असि, मसि, और कृषि का व्यापार चलता हो उसे कर्मभूमि क्षेत्र कहते हैं, इन्ही क्षेत्रों में पंच परमेष्ठि भगवंत होते हैं अतः धर्मादि की सभी अनुकूलता यहीं होती है । कालिक दृष्टि से महाविदेह क्षेत्र में शाश्वत काल है । वहाँ सदैव चौथा आरा ही प्रवर्तित रहता हैं । जैसा चौथा आरा भरत क्षेत्र में होता है ठीक वैसा ही काल पाँचों ही महाविदेह क्षेत्र में शाश्वत रुप से चलता ही रहता है । वहां तीर्थंकरो का विरह होता ही नहीं है । वहाँ सदाकाल विचरण करनेवाले तीर्थंकर विहरमान जिन-तीर्थंकर कहलाते हैं । ऐसे २० तीर्थंकर होते हैं । वर्तमान काल में अर्थात् आज भी ढाई द्वीप के पाँच महाविदेह क्षेत्र में कुल मिलाकर २० तीर्थंकर हैं । एक महाविदेह क्षेत्र में चार तीर्थंकर भगवंत विचरण करते हैं । इस समय विचरण करते हुए २० तीर्थंकर भगवंतो के नाम इस प्रकार प्रचलित एवं प्रसिद्ध है१. जंबुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में - (१) सीमंधरस्वामी भगवान (२) श्री युगमंधरस्वामी भगवान २. धातकीखंड के महाविदेह में (३) श्री बाहुस्वामी भगवान (४) श्री सुबाहुस्वामी भगवान (५) श्री सुजातस्वामी भगवान (६) श्री स्वयंप्रभस्वामी भगवान (७) श्री ऋषभाननस्वामी भगवान (९) श्री सुरप्रभस्वामी भगवान (१०) श्री विशालस्वामी भगवान ( ११ ) श्री वज्रधरस्वामी भगवान (८) श्री अनंतवीर्यस्वामी भगवान ( १२ ) श्री चन्द्राननस्वामी भगवान ३. पुष्करार्ध द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में - (१३) श्री चंद्रबाहुस्वामी भगवान ( १७ ) श्री वारिषेणस्वामी भगवान (१४) श्री भुजंगस्वामी भगवान (१८) श्री महाभद्रस्वामी भगवान (१५) श्री ईश्वरदेवस्वामी भगवान (१९) श्री देवयशास्वामी भगवान 450
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy