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________________ नाम कर्म उपार्जित किया है और आगामी चौबीसी में वे सभी उन उन नाम वाले तीर्थंकर बनकर अनेक भव्यातमाओं को तिरा कर मोक्षगमन करेंगे । कहते हैं कि “सुलसादिक नव जण ने दीयो” सुलसा आदि नौ को भगवान महावीर ने तीर्थंकरत्व प्रदान किया है, अर्थात् भगवान महावीर स्वामी के समय में ही ९ महान् व्यक्तियों ने तीर्थंकर नामकर्मबाँधा है, जिन में राजा श्रेणिक, सुलसाश्राविका, रेवती श्राविका, शंख-श्रावक, आणंद श्रावक, उदायन, पोटिल श्रावक, सुपार्थ चाचा, शतक श्रावक आदि प्रमुख हैं । अकेले चरम जिनेश्वर प्रभु महावीर के समय में नौ-नौ पुण्यात्माओं ने तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया, यह कोई छोटी सी नगण्य बात नहीं, बल्कि बड़ी ही महत्त्वपूर्ण बात हैं । ___ आगामी चौबीसी में तीर्थंकर बनने वालों की नामावली पढ़ने से आश्चर्य होगा। श्री कृष्ण वासुदेव भी तीर्थकर भगवान बनेंगे और बारहवे अममस्वामी के रुप में पूजित होंगे । नारदजी, जिन्हें सभी लोग नाटकीय - मायावी कहते हैं, परन्तु वास्तव में वे कैसे रहे होंगे कि जिसके कारण उनका तीर्थंकर बनना सुनिश्चित् हो चुका है । वास्तविकता को ताक पर रखकर भिन्न चित्र ही प्रस्तुत हुआ है - ऐसा लगता है । कर्ण आदिभी ऐसे ही है, जिन्हें देखकर आश्चर्य अवश्य होगा। भावीमें तीर्थंकर बनने वाले नामादि निक्षेप से अभी वर्तमान में ही पूजनीय बन जाते हैं । आगामी सम्पूर्ण चौबीसी की प्रतिमाएँ हैं और वे भी अभी पूजनीय हैं। पद्मनाभस्वामी का तो भव्य विशाल जिनालय उदयपुर (राजस्थान) में आज भी विद्यमान है, जिस में बड़ी ही भव्य एवं विशाल प्रतिमा है जो वर्षों से पूजी जाती रावण भी तीर्थंकर बनेंगे : वर्तमान काल में रावण को एक मात्र ‘बुरे' नाम से ही पहचाना जाता है । बुरा बुरा कहते कहते यहाँ तक परिस्थिति पैदा हो गई है कि 'बुरा' शब्द ही रावण का पर्यायवाची शब्द बन चुका है । प्रभु महावीर सापेक्षवाद की अनेकान्तिक दृष्टि से देखने की हमें शिक्षा देते हैं, और इस प्रकार इस दृष्टि से सापेक्ष भाव से रावण को देखें तो मन में प्रश्न उठता है कि रावण बुरा था या रावण का एक कार्य बुरा था ? क्या रावण का सम्पूर्ण जीवन बुरा था ? जिसके कारण हम रावण-बुरा, रावण बुंरा की चीख पुकारते रहते हैं । सीता के अपहरण करने का रावण का एक कार्य वास्तव में बुरा कार्य था, इससे यह बात निर्विवाद है । सचमुच ही रावण ने 394
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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