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________________ प्रकाशक मंथा के हृदयोदगार ..... संशोधन .... और प्रकाशन के उद्देश्यों को लेकर ज्ञान की दिशा में कार्य करने के संकल्पवाली एक संस्था विश्व के मंच पर उदित हुई है। जिसका नाम है “श्री महावीर रिसर्च फाउण्डेशन" - वीरालयम्। ___ महाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई नगरी से अत्यन्त समीप विद्या नगरी लघु काशी स्वरुप पुना नगरी है। पुण्यपत्तन के प्राचीन नामवाली पुना नगरी के सीमावर्ती कात्रज घाट की सुरम्य पर्वतमाला के बीच मिनि हिल स्टेशन स्वरुप वीरालयम् स्थित है। खुशनुमा हवामान के बीच शान्त वातावरण में ५० एकर - करीब १५० बीघा की विशाल भूमि में प्रसृत वीरालयम् संस्था का जन्म स्थान है। प्राचीन शास्त्रों और ग्रन्थों में से संशोधन करते हुए जो नवनीत हाथ में आए उसे जन-जन तक पहुंचाने के पवित्र उद्देश्य से यथा नाम तथा कार्य वाली संस्था का यथार्थ अभिधान “श्री महावीर रिसर्च फाउण्डेशन" है। भगवान महावीर के संक्षिप्त नाम "वीर" शब्द के साथ 'आलय' शब्द जोड़कर संस्कृत भाषी नामकरण “वीरालयम्” है। गौतम जैसे महान गणधर के जीभ पर चढा हुआ मंलिप्त मंत्र ही मानों समझो . वीर... वीर... यह नाम हर श्वास के साथ रटण में आता था आलय यहां वीरालयम है। इस क्षेत्र में कार्यरत प्रस्तत संस्था ज्ञान के शिखर सर करने की दिशा में अभी तो प्रथम ही कदम उठा रही है। जिसमें महान मंगलिक स्वरुप नमस्कार महामंत्र का ही ग्रन्थ प्रकाशित करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है। प्रकाशन की दिशा में यह संस्था "श्री महावीर जैन साहित्य सुमन" की श्रेणी में ... एक - एक से चढते सुमन वाचक वर्ग के कर कमलों में रखती ही जाएगी ऐसी आशा और पुरुषार्थ की प्रबल भावना रखते हैं। पू. पंन्यास प्रवर श्री अरुण विजयजी महाराज जो कि हमारे प्रेरणास्रोत है। हमारे जनक है। मूलभूत लेखक एवं प्रवचनकर्ता विद्वान है। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न है। अनेक पुस्तकों के सर्जक है। "श्री नवकार" पर गहरा चिन्तन तत्त्वज्ञान सभर नवनीत हमको लेखन के रुप में प्रदान किया। इसीमें हमारी भाग्यदशा ने करवट बदली। विद्वान अनुवादक श्रीमान जसराजजी सिंघी ने काफी परिश्रम लेकर हिन्दी भाषांतर तैयार किया। पूज्य पंन्यासजी म.सा. के मूलभूत गुजराती लेखन को हिन्दी रुपान्तर करके हिन्दी भाषी वर्ग तक अमूल्य साहित्य प्रसादी पहुंचाने का यथार्थ पुरुषार्थ किया अतः वे शतशः अभिनंदन के पात्र है। श्री लुणावा जैन संघ, श्री पद्मप्रभु आदीश्वर जैन देवस्थान पेढी ने पूज्यश्री की प्रेरणा से ज्ञान खाते में से आर्थिक सहयोग प्रदान किया परिणाम स्वरुप प्रस्तुत सर्जन अस्तित्व में आ सका। अतः लणावा संघ अभिनंदनीय है। बम्बई भायखला के श्री किरीट वडेचा एवं हितेश वडेचा पिता-पत्र ने इसका टाइप सेटिंग कंपोझिंग करके दिया है। मुद्रण व्यवस्था हेतु वयोवृद्ध सेवाभावी कार्यकर्ता श्री रमणिकभाई रामचंद्र सलोत ने जो परिश्रम उठाकर मुद्रण किया है सचमुच धन्यवाद के पात्र है। पूज्य मुनिश्री हेमन्तविजयजी म. ने प्रुफ संशोधन करके जो शुद्धिकरण किया है यह प्रयास काफी स्तुत्य है। इस समूहात्मक कार्य के लिए सभी को साधुवाद प्रदान करते हुए हम धन्यता अनुभव करते हैं। सेवा - शिक्षा - और साधना के त्रिवेणी संगम तीर्थ तुल्य “वीरालयम्" के इन्ही उद्देश्यों की परिपूर्ति हेतु हमारा यह प्रयास सार्थक हो ऐसी हम आशा रखते हैं। "नवकार जैसे महामंत्र में दार्शनिक तत्त्वज्ञान" सचमुच यह काफी संशोधन का विषय है। प्रस्तुत प्रयास यह प्रथम कदम ही समझो। प्रथम चरण के आगे ... द्वितीय चरण की प्रतिक्षा करते हुए हम वाचक वर्ग के कर कमलों में प्रस्तुत पुस्तक अर्पण करते हुए धन्यता अनुभव करते हैं।... - श्री महावीर रिसर्च फाउण्डेशन-वीरालयम् ट्रस्ट मंडल XVI
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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