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________________ किन अगम्य कारणों से कोई इस संस्कार का विरोध करके मात्र 'प्रणाम' बोलने की बात करते हैं .. इसका आशय समझ में नहीं आता । यह तो मात्र प्रथम दर्शी शिष्टाचार का व्यवहार है । कुमारपाल जैसे गुर्जरेश्वर को भी घोड़े पर जाते हुए यदि कोई जिनाज्ञा का तिलकधारी श्रावक सामने दिखाई पड़ता, तो वे तुरन्त ही अपने घोड़े पर से नीचे उतर कर स्वधर्मी सहधर्मी बन्धु को करबद्ध नमस्कार करते थे । यह शिष्टाचार तो रहना ही चाहिये क्यों कि यह नम्र भावना का द्योतक है - नम्रता गुण को प्रकट करवाने वाला है । 3 : 'नमो' में पूज्य भाव है यद्यपि नमस्कार नम्रता नम्रभाव सूचक अवश्य है, परन्तु साथ ही साथ यह पूज्यभाव का द्योतक भी हैं । इसके द्वारा नमस्कार कर्ता नमस्करणीय के प्रति अपना आदर भाव पूज्य भाव प्रकट करता है । नमस्कार करते समय नमस्करणीय. के प्रति उसमें पूज्य भाव है - इसका परिचय वह मौन रुप से नमस्कार करके प्रकट करता है । जहाँ जहाँ पूज्य भाव हो वहाँ वहाँ नमस्कार होता है ? या जहाँ जहाँ नमस्कार होता है, वहाँ वहाँ पूज्य भाव होता है ? अधिक देशवृत्ति कौन है और न्यून देशवृत्ति कौन है ? इसी प्रकार व्याप्य व्यापक भाव संबंध तथा अविनाभाविपन भी देखना चाहिये । नमस्कार अधिक देशवृत्ति है । पूज्य भाव न्यूनदेशवृत्ति है, अतः नमस्कार व्यापक है और पूज्यभाव व्याप्य है । नमस्कार में पूज्यभाव निहित है, परन्तु अविनाभावित्व की दृष्टि से विचार करें तो स्पष्ट लगता है कि जहाँ जहाँ नमस्कार हो वहाँ वहाँ पूज्य भाव रहे अथवा न भी रहे, निश्चित् नहीं है। रहता ही है - ऐसा हम भारपूर्वक निश्चित रुप से नहीं कह सकते हैं, क्यों कि अविनीत उद्धत्त और मायावी जीव कपटवृत्तिसे भी नमस्कार करते हैं, कोई दिखावे मात्र के लिये नमस्कार करते हैं, कोई व्यवहार मात्र से ही नमस्कार करते हैं, कोई नमस्कार करने के खातिर ही नमस्कार करते हैं परन्तु मन से नमस्कार नहीं करते । इस प्रकार माया की कपटवृत्ति वाले जीव नमस्कार का दिखावा करके स्वार्थ साधने की तैयारी में ही रहतेहैं । ऐसे नमस्कारों में पूज्य भाव नहीं होत । पूज्यभाव होगा, वहाँ नमस्कार अवश्य होगा । हाँ, पूज्यभाव, अहोभाव, ये नमस्कार द्योतक है । आदर भाव में नमस्कारवृत्ति अवश्य रहती है । मन में ही यदि पूज्यभाव हो और वह जीव नमस्कार न करे ऐसा कभी नहीं हो सकता । वह - - - - - 92
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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