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मोक्षपद सर्वज्ञों ने बताया है। सर्वकर्मरहित जन्म-मरण रहित अशरीरी अवस्था की मुक्ति-सिद्धावस्था ही सही मुक्ति है। अतः सर्वज्ञ वचन ही ग्राह्य है। उपादेय है। विश्वसनीय एवं श्रद्धेय है। जैसा साध्य होगा वैसी तदनुरूप साधना होगी। इसलिए मोक्षरूप साध्य को सही... सत्य मानना प्रथम जरूरी है। फिर तदनुरूप साधना करनी चाहिए। सम्यग् दर्शन पाने के बाद चारित्र भी सम्यग् बन जाएगा । अतः “दर्शन, ज्ञान
और चारित्र" तीनों शुद्ध सत्य बनेंगे। तभी मोक्ष का मार्ग बनेगा। इसीलिए तत्त्वार्थ में "सम्यग् दर्शन–ज्ञान–चारित्राणि मोक्षमार्गः।" बताया है। अतः मोक्ष-आत्मादि विषयों के बारे में भ्रान्त गलत धारणा न स्वीकारते हुए... इनका भी गलत स्वरूप समझकर, सत्य स्वरूप अच्छी तरह पहचानकर सत्य की कसोटी पर परीक्षा करके सर्वज्ञोपदिष्ट सत्य का आचरण करके चरम सत्य को प्राप्त करना चाहिए । अन्यथा तो फिर संसार में परिभ्रमण होता ही रहेगा।
मुक्ति विषयक विविध दर्शनों की भ्रान्त मान्यताएँ• नीचे की तालिका से भाव और अभावात्मक दोनों अवस्था का ख्याल आ जाएगा कि... मोक्ष में क्या क्या है और क्या-क्या नहीं है ?
मोक्ष में क्या-क्या है ? और क्या क्या नहीं है? अभावात्मक
भावात्मक मोक्ष में शरीर का अभाव है।
सिर्फ अशरीरी स्वतंत्र अकेली आत्मा
ही रहती है। आयुष्य का सर्वथा अभाव है।
मोक्ष में शरीर के न रहने के कारण
आयुष्य होता ही नहीं है। प्राण १० में से १ भी नहीं है।
अदेही को इन्द्रियाँ-मनादि प्राण नहीं
होते हैं। योनि-उत्पत्तिस्थान का सर्वथा
उत्पत्ति-जन्म-मरण है ही नहीं। अभाव है। काल की स्थिति का अभाव है। सिद्ध अकाल-कालतीत है, अतः
अनन्तकाल तक रहनेवाले हैं। सभी कर्मों का सर्वथा अभाव है । कर्मरहित-अकर्मी सिद्ध स्वगुणों की
पूर्णता को प्राप्त है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा