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________________ प्रभु का उपकार और शासन का उपकार भ. महावीर प्रभु ने उपकार ज्यादा किया कि भ० महावीर के पश्चात् के इस शासन धर्मतीर्थ से उपकार ज्यादा होगा ? इस दोनों बातों का कालिक अपेक्षा की दृष्टि से विचार किया जाय तो स्पष्ट होता है कि... भ० महावीर को धर्मतीर्थ की स्थापना करके जगत् पर उपकार करने का समय मात्र ३० वर्ष ही मिला जबकि ... प्रभु के द्वारा संस्थापित इस तीर्थ-शासन से तो २१००० वर्ष तक उपकार होता ही रहेगा । इतने लम्बे २१००० वर्षों के सुदीर्घ काल में कितनी भव्यात्माएँ धर्म पाएंगी ? कितनी सम्यक्त्वं पाएंगी ? कितनी दीक्षा ग्रहण करेंगी, कितनी भव्यात्माएँ तपश्चर्या करेंगी ? इस तरह सारी गणना संख्या में की जाय तो नामुमकिन लगता है। इस तरह कालिक अपेक्षा से प्रभु के उपकार से भी अनेक गुना उपकार इस धर्मतीर्थ “शासन " का होता है । ऐसा समझ में आता है। अतः कलिकाल सर्वज्ञ के वचन- ' - “ नमोऽस्तु तस्मै तव शासनाय च ” बिल्कुल सार्थक - सहेतुक सिद्ध होते हैं । अतः आज के इस वर्तमान काल में धर्मतीर्थ - शासन की उपकारिता समझकर, इसका महत्व समझकर इसकी प्राप्ति की उपेक्षा न करते हुए. अनादर न करते हुए ... भावपूर्ण उपासना करनी ही चाहिए। ऐसे हुंडा अवसर्पिणी के पंचम आरे के भयंकर इस कलियुग के कराल काल में भी प्रभु का शासन प्राप्त हुआ तो है । बस, यही हमारा परम सौभाग्य है । हमारा परम पुण्योदय है कि हमें तारक शासन प्राप्त हुआ है । अतः इस मिले हुए अमूल्य दुर्लभ - दुर्मिल ऐसे इस मनुष्य जन्म को पाकर किसी भी रूप से धर्मतीर्थ - वीतराग शासन की अद्भुत उपासना अवश्यरूप से कर ही लेनी चाहिए । अवगणना पहले प्रकार के अतीर्थ सिद्ध तो वे गिने जाते हैं जो तीर्थ की स्थापना ही न हुई हो और उसके पहले ही मोक्ष में चले जाय । तथा दूसरी कक्षा के अतीर्थसिद्ध वे हैं जो कि चल रहे तीर्थ शासन का विच्छेद ही हो जाय और उसके बाद के काल में कोई मोक्ष में जाय तो वे अतीर्थ सिद्ध कहलाते हैं । एक तीर्थंकर परमात्मा का स्थापित तीर्थ का काल चल रहा हो उस शासन काल में ही दूसरे तीर्थंकर हो जाय और वे भी अपने धर्मतीर्थ की स्थापना करे तब से उनके शासन का काल चलता है । अतः बीच में कहीं तीर्थ का विच्छेद होने का अन्तराल ही नहीं आता है । जैसे कि... भ. श्री पार्श्वनाथ का शासन चल रहा था कि... २५० वर्ष के पश्चात् २४ वे तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी भ. हुए। केवलज्ञान पाकर उन्होंने भी धर्मतीर्थ प्रवर्ताया । अतः बाद में महावीर का शासनकाल चल रहा है। इस विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति " १४०१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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