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________________ ज्ञान होता ही नहीं है । जड पुद्गल पदार्थ के गुण धर्मों में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श ही हैं। इनमें ज्ञान न तो कभी हुआ है और न ही कभी होगा। ____ अब स्त्री शरीर हो या पुरुष शरीर हो या चिंटी-मकोडे या गाय-भैंस-घोडे-गधे किसी का भी शरीर हो लेकिन सब में आत्मा तो होती ही है। बिना चेतन जीवात्मा के संसार में एक भी शरीर नहीं होता है। शरीर के बिना आत्मा का अस्तित्व रह सकता हैमोक्ष में बिनाशरीर के ही आत्मा रहती हैं । इसीलिए उसे अशरीरी कहते हैं । लेकिन स्त्री हो या पुरुष उन सब में आत्मा तो समान ही है । याद रखिए, आत्मा न तो पुरुष है और न ही स्त्री है । आत्मा स्त्री रूप या पुरुष रूप या नपुंसक रूप होती ही नहीं है । अतः आत्मा को लिंग होता ही नहीं है । आत्मा अलिंगी-अवेदी ही है । परन्तु तथाप्रकार के वेदमोहनीय क्रर्म बांधते हैं जीव और वे जब उदय में आते हैं तब उस वेदमोहनीय कर्म के कारण जीव वैसे लिंगधारी वेदवाले होते हैं । वेद ३ प्रकार के होते हैं । १) स्त्रीवेद, २) पुरुषवेद, और ३) नपुंसक वेद । इन ३ प्रकार के वेद के कारण १) स्त्रीलिंगधारी, २) पुरुषलिंग धारी, तथा ३) नपुंसक लिंगधारी ऐसे शरीर को धारण करके जीव जन्म लेते हैं। ऐसे शरीरों को धारण करने के कारण शरीर रचना में लिंग के कारण भेद पडता है। यदि शरीर को छोडकर आत्मा को देखा जाय, ज्ञानादि की समानता की दृष्टि से देखा जाय तो...स्त्री और पुरुष दोनों में अनेक प्रकार की समानता भी दिखाई देती हैं। क्योंकि ज्ञान आत्मा को होता है, और आत्मा सबकी समान है। ज्ञान तो ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के आधार पर होता है । ज्ञान को शरीरं से कोई संबंध नहीं रहता है । जी हाँ,...शरीर की इन्द्रियाँ जरूर सहायक साधन हैं । माध्यम मात्र हैं । इन्द्रियाँ बाहरी दृश्य-विषयों को ग्रहण करके अन्दर लकर मनके जरिए आत्मा को पहुँचाती है । अतः आत्मा को ज्ञान पहुँचाने में माध्यम रूप इन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रिय कहकर संबोधित किया है । ज्ञानेन्द्रिय यह नामकरण है । परन्तु इससे ऐसी भ्रान्ति में मत रह जाइए की बिना आत्मा के भी ये इन्द्रियाँ अपने आप स्वयं ज्ञान प्राप्त कर लेगी। जी नहीं ... । कदापि नहीं। यदि ऐसा होता ... होता तो... मृतक (मृतशरीर) मुडदे की पाँचों इन्द्रियाँ संपूर्ण हैं । अतः उन इन्द्रियों से क्या आत्मा को ज्ञान होता रहेगा? जी नहीं। कदापि नहीं। अनन्तकाल में भी किसी भी मृतक को ज्ञान हुआ ही नहीं हैं। और भविष्य में कभी भी होने की कोई शक्यता ही नहीं है। हो ही नहीं सकता है । क्योंकि ज्ञान का अधिष्ठाता जीव चेतन-आत्मा है । वही शरीर छोडकर सदा के लिए विदा ले चुका है अतः ज्ञान होने का कोई सवाल ही खडा नहीं होता है। आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२९७
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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