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अहिंसा के पुरस्कर्ता मृगचर्म पर नहीं बैठते हैं। इसकी रचना देवता करते हैं । अतः निर्जीव - जड होता है ।
४) छत्रत्रय - परमात्मा जब समवसरण में बिराजमान होते हैं तब देवता उनपर ३ छत्रों की रचना करते हैं । इससे परमात्मा ३ लोक में पूज्य है । तीनों लोकों के सर्व जीवों के लिए सर्वमान्य - संपूर्ण पूज्य है। इसके प्रतीक रूप में छत्रत्रय बनाते हैं ।
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५) रत्नमय ध्वज ( महेन्द्र ध्वज) • परमात्मा जब विचरते हैं तब उनके आगे देवता रत्नमय बडे विशाल महेन्द्रध्वज की रचना करते हैं । यह आगे चलता है ।
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६) सुवर्ण कमल - तीर्थंकरों की अतिशय पुण्यप्रकृति के कारण देवता नौं सुवर्णकमलों की रचना करते हैं । और प्रभु के चलते समय वे सुवर्ण कमल क्रमशः बारी-बारी से आगे रखते हैं । जिससे प्रभु के चरण उन कमलों पर ही पडते हैं। भूमि पर नहीं ।
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७) समवसरण की रचना - सर्वज्ञ अनन्तज्ञानी भगवान की देशना के लिए देवता ३ गढ (प्राकार) के विशाल समवसरण की रचना करते हैं । रजत, स्वर्ण तथा रत्नमय ऐसे ३ प्राकार की रचना करते हैं । जिसमें ३ गति के देवता, मनुष्य और तिर्यंच गति के पशु-पक्षी आदि सभी देशना सुनते हैं । बारह पर्षदा बैठती है । ऊपर अशोक वृक्षादि होता है ।
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८) चतुर्मुख प्रतिबिम्ब रूप- सर्वज्ञ प्रभु देशना देने पूर्व दिशा सन्मुख बैठते हैं तब शेष पश्चिम–उत्तर–दक्षिण की तीनों दिशा में तत्सदृश प्रतिबिम्ब की रचना करते हैं । जिसमें सभी बैठे हुए लोगों को प्रभु मेरे सन्मुख ही बैठे है ऐसा आभास होता है । चारों मुख से बोलते हैं ऐसा एहसास होता है ।
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(९) अशोकवृक्ष - समवसरण के केन्द्र में चैत्यवृक्ष - अशोकवृक्ष की रचना करते हैं। जिसके नीचे प्रभुजी तथा बारह पर्षदा के सभी लोग बैठते हैं। सबका शोक दूर हो
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१०) कंटक उल्टे होते हैं- प्रभु के विचरने के मार्ग में कांटे भी उल्टे अधोमुखी हो जाते हैं । जिससे पैरों में न लगे ।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा