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________________ अरे ! ध्यान ही साध्य नहीं है । यह साधना पद्धति है । कार्य नहीं कारण है । और मन को साधना प्रथम कक्षा में साध्य जरूर लगता है लेकिन नहीं... आगे जाकर यह भी साधन बन जाता है । अरे ! मन को साध कर आप क्या करोगे? आखिर तो आगे बढकर ज्ञान साधना है । उसके लिए कर्मक्षय का लक्ष्य सिद्ध करना है । लगे हुए कर्मों के आवरण नष्ट होंगे तब जाकर आत्मा में से ज्ञानादि गुण प्रकट होंगे। एक तरफ तो लोगों को साफ निषेध किया जाता है कि ज्ञान पढकर मत आओ। ज्ञान पढकर-प्राप्त करके ध्यान मत करो। और दूसरी तरफ अपनी मानी हुई मान्यताधारणा चाहे वह मिथ्याज्ञान भी हो फिर भी लोगों पर थोपा जाता है । किसी भी प्रकार की ज्ञान की कोई भी पुस्तक शास्त्रादि भी पढ़ना नहीं और अपनी बात को बार-बार कई दिनों तक TV आदि के आधुनिक माध्यमों से HEMMARING करके भी थोपी जाती है। ताकि उनके सिद्धान्तों का ज्ञान वे भूल जाय और अपनी मान्यता पर रूढ हो जाय। क्या यह ध्यान सिखाने का सही तरीका है? और क्या यह ज्ञान सिखाने का भी सही तरीका है ? जी नहीं, कैसे संभव हो सकता है ? और कैसे इसे सही सत्य कहा जा सकता है? - सामान्य मनुष्य जिसको तत्त्वों का सही ज्ञान ही नहीं है, जो बिचारा कोरी पाटी जैसा आया है उसको चाहे जैसा गलत मिथ्याज्ञान भी सिखाया जाय–दिया जाय तो भी काफी अनर्थ होता है। अरे ! कम से कम इतना तो सोचना ही था कि महावीर जैसे तीर्थंकर और अरिहंत बने हुए सर्वज्ञानी ने जो ज्ञान जगत् को दिया है, तथा जो त्रैकालिक सत्य ज्ञान है उसका तो कम से कम निषेध नहीं करते । अरे ! उन्होंने १२ ॥ वर्ष तक ध्यान साधना करके, साथ ही उग्र विहार, घोर उपसर्ग सहम करते हुए, मारणान्तिक उपसर्ग-परीषह सहन करते हुए, घोर तपश्चर्या करते हुए जिस तरह अपनी आत्मा पर रहे हुए कर्मावरणों का सर्वथा क्षय करके जो शाश्वत ऐसा अनन्त ज्ञान पाया है, उसके बल पर, आधार पर उन्होंने जगत को जो देशना के रूप में यथार्थ-सत्यरूप ज्ञान दिया है क्या वह गलत मिथ्या हो सकता है ? और आज के सिखाए हुए साधक जिनके जीवन में यम-नियमादि किसी भी प्रकार के आचार-विचार का अंशमात्र भी यथार्थ ज्ञान नहीं है वे बेचारे ध्यान करके क्या ज्ञान पाएंगे? कैसा ज्ञान पाएंगे? हो सकता है कि कर्मावरण के उदय से मिथ्याज्ञान भी पाएं । और उसी को भ्रान्तिवश-भ्रमणावश सत्य मानकर बैठेंगे तो कहाँ और कैसे आत्मा का विकास होगा? वह मिथ्यात्वी का पुतला बनकर घूमता रहेगा। जी हाँ, शारीरिकमानसिक लाभ कुछ मिलेगा । मानसिक शांति मिलेगी। क्योंकि इतनी देर तक मन का ध्यान साधना से "आध्यात्मिक विकास" ९८१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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