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और विस्तृत विवेचन से ज्यादा स्पष्ट समझा जा सकता है । मिथ्यात्वी जीवों की प्राधान्यता संसार में सदा काल रही है । संख्या में मिथ्यात्वियों की बहुमती भी सदा काल रही है । भूतकाल में अनादि-अनन्त काल से मिथ्यात्वियों की संख्या काफी ज्यादा ही रही है और भविष्य में भी रहने ही वाली है। अरे ! यदि भगवान महावीर, पार्श्वनाथ या आदिनाथ आदि तीर्थंकर भगवन्तों की विद्यमानता के काल में भी मिथ्यात्वी जीवों की संख्या बहुमती के रूप में अनेक गनी ज्यादा थी। उनमें से जो जो समझ सके वे सम्यक्त्वी बन सके और शेष मिथ्यात्वी ही रहे । सभी चौबीसों तीर्थंकर भगवन्तों ने अपनी देशना आदि द्वारा जगत् में से मिथ्यात्व कम करने का ही कार्य किया है । परन्तु मिथ्यात्वी जीवों की संख्या इतनी अनन्त है कि अनन्तकाल तक अनन्त गुनी मेहनत करने के बाद भी शायद अनन्तवें भाग के जीवों को ही मुश्किल से सम्यक्त्वी बना सकते हैं । इसलिए अनन्त तीर्थंकर भगवन्त भूतकाल में हो जाने के बाद आज भी अनन्त जीव मिथ्यात्व के निबिड अन्धकार से ग्रस्त
भविष्य में कभी भी मिथ्यात्वी जीवों की संख्या घटने वाली नहीं है । ऐसा न तो कभी हुआ है और न ही कभी होगा कि... मिथ्यात्वी जीवों की संख्या घट गई और सम्यक्त्वी जीवों की संख्या बढ़ गई हो ऐसा कभी नहीं हुआ है । और भविष्य में कभी होगा भी नहीं । निगोद में अनन्तानन्त सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय से सभी जीव अव्यक्त मिथ्यात्व ग्रस्त होते हैं । स्थूल बादर साधारण वनस्पतिकाय में आलु-प्याजादि के सभी अनन्त जीव. अव्यक्त मिथ्यात्वी ही होते हैं । पृथ्वी-पानी-अग्नि-वायु-वनस्पति की कक्षा के एकेन्द्रिय सभी जीव मिथ्यात्वी ही होते हैं । २, ३, ४, इन्द्रियवाले सभी अनन्त जीव मिथ्यात्वी ही रहते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच-पशु-पक्षी-जलचर-मछली आदि के अनन्तजीवों में ९९% सभी मिथ्यात्वी ही होते हैं । बडी मुश्किल से शायद १% पशु-पक्षी सम्यग् दृष्टि होंगे। देवगति के चारों निकाय के देवी-देवताओं में भी बहुमती संख्या मिथ्यात्वी जीवों की ही है। नरकगति में असंख्य नारकी जीवों में भी ९९% प्रतिशत नारकी जीव मिथ्यात्वी हैं । बडी मुश्किल से १% या २% नारकी शायद सम्यक्त्वी होंगे। अब रही बात अन्तिम मनुष्य गति की । मनुष्य गति में भी जितने संख्यात मनुष्य हैं उनमें भी बहुमती प्रायः मिथ्यात्वी जीवों की ही है । हाँ, इतना जरूर है कि प्रतिशत–फीसदी की दृष्टि से संख्या में मात्रा जरूर अन्य गतियों की अपेक्षा सम्यक्त्वियों की ज्यादा होगी। परंतु ज्यादा का अर्थ यह नहीं है कि मिथ्यात्वियों की अपेक्षा ज्यादा हो । नहीं । मिथ्यात्वियों की संख्या सम्यक्त्वियों से ज्यादा भूतकाल के अनन्त वर्षों में भी नहीं हुई और भविष्य में
"मिथ्यात्व" - प्रथम गुणस्थान
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