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________________ आसान है परन्तु जागते हुए को जगाना बहुत ही कठिन है । संसार हमको नहीं छोड़ेगा चूंकि उसने पकड़ भी नहीं रखा है । हमने ही आसक्ति से संसार को पकड़ रखा है अतः हमको ही छोड़ना पड़ेगा। तभी संसार छूटेगा। संसार का स्वरूप बड़ा ही विचित्र है । संसार में एक आता है दूसरा जाता है । एक जन्म लेता है तो दूसरा मरता है । बच्चा जन्म लेता है तो माँ मरती है । कभी कभी दोनों ही मृत्यु की शरण में चले जाते हैं। किसी के घर महेफिल चल रही है तो किसी के घर. .. रूदन चल रहा है । कहीं हँसी-खुशियों का कोई पार नहीं है तो कहीं रो-रोकर आँखों से गंगा-जमुना बहा रहे हैं। कहीं सुख-मौज की लहरें चल रही हैं तो कहीं दुःख की थपेड़ें खा रहे हैं । ज्ञानी भगवंतों ने अपने ज्ञान योग से भावि का स्वरूप एवं जन्म के बाद के जन्मान्तर का स्वरूप देखकर बताया कि इस संसार में माँ मरकर पत्नी बनती है और पत्नी मरकर माँ बनती है । बाप मरकर बेटा बनता है और बेटा मरकर बाप बनता है। भाई मरकर शत्रु भी बनता है, बेटी मरकर बहन भी बनती है । यह तो फिर भी ठीक है कि, मृत्यु के बाद अगले जन्म में ऐसे सम्बन्ध बनते हैं। लेकिन इसी जीवन में ऐसे सम्बन्ध आज भी संसार में हो रहे हैं, जहाँ भाई-बहन की शादी की जाती है। आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं कि बाप ने अपनी बेटी पर बलात्कार किया। बेटे ने कुल्हाड़ी से माँ और बाप दोनों को मार डाला । पति ने पत्नी को जिन्दा जला दिया और पत्नी ने पति को चाय में जहर पिला दिया। कहीं भाई भाई का गला घोटता है तो कहीं बाप बेटे को जान से मार डालता है। कहीं सास बहु को जला देती है, तो कहीं संसार से ऊब कर बहु अपने आप जलकर मर जाती है । प्रेम के नाम पर भी मौत और मौत के सामने दिखने पर भी प्रेम की चाहत । बड़ा ही विचित्र संसार का स्वरूप है। ___ एक बहुमाली मंजिल से किसी कुंआरी कन्या ने जो माता बन चुकी थी, अपने नए जन्मे हुए शिशु को ऊपर से नीचे कूडे-कचरे में फेंक दिया। हाश ! क्या माता के दिल में से संतान के प्रति प्रेम समाप्त हो जा रहा है? क्या दयालु माता निर्दयी बनती जा रही है ? परन्तु हाँ, पत्नी बने पहले कुंआरी अवस्था में माता बनने के बाद क्या नतीजा आएगा? हाय ! यही कलियुग की पहचान है कि पत्नी बनने के पहले माँ बनना, और सन्तान के प्रति क्रूर बनकर फैंक देना। उस अपरिणित युवती ने ताजे जन्में हुए शिशु को ऊपर से फैंक दिया। नीचे कागज का ढेर था, उस पर बालक गिरा। सद्भाग्यवश बच गया। किसी सज्जन ने उठाकर अनाथाश्रम में दे दिया। पालन-पोषण हुआ। वह लड़की थी, बड़ी हुई । अनाथाश्रमवासियों ने स्कूल में पढाया और कालेज में भेजा । इधर माता-पिता ने १०८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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