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सारी सृष्टि का संहार हो जाएगा। प्रलय बड़ा भयंकर विनाशकारी होगा समस्त सृष्टि का एक तिनका भी नहीं बचेगा । यह सोचते हुए कभी आश्चर्य लगता है कि क्या इसे लीला समझना ? ईश्वर की तो मानों लीला होती होगी लेकिन अनन्त जीवों की जीवन लीला ही समाप्त हो जाय उसका क्या ? अनन्त जीवों को मारने का पाप किसके सिर पर ? चलो आप तो कहते हैं ईश्वर को पाप कभी लगता ही नहीं भले वह करे तो भी वह लीला कहा जाएगा। दूसरे श्लोक में श्री कृष्ण को नमस्कार किया गया है वहां श्री कृष्ण के विशेषण के रूप में गोप वधूटि दुकूल चौराय यह विशेषण रखा है । अर्थात् स्नान करने के लिए गोपीयां जब सरोवर या नदी में उतरी वे निर्वस्त्र होकर स्नान करने में मस्त हो गई तब उनके बाहर रखे हुए कपड़े चुराने वाले श्री कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं। जिनको हम भगवान का दरजा देते हैं उन्हें क्या इन शब्दों से नमस्कार किया जाय ? हां यह तो भगवान की लीला थी। इस उत्तर से क्या समाधान होता है ? भगवान ये कार्य करे तो लीला है । और यदि भगवान का ही भक्त यदि भगवान का अनुकरण करके वैसा ही कार्य करेउदाहरणार्थ प्राज यदि कोई व्यक्ति किसी स्नान करती हुई स्त्री के वस्त्र चुराता है तो वह लीला नहीं-चोरी है। लोग उसे चोर-चोर बदमाश कहीं का कह कर पीटने लग जाते हैं। अच्छा तो ऐसे समय में यदि वह चोर यह कह दे कि मैं तो लीला करने आया हूँ। जैसा भगवान ने किया था वैसा अनुकरण करने आया हूँ तो फिर क्या होगा। यदि इस कार्य को चोरी कही जाती हो तो ऐसा कार्य जो भी कोई करे वह चोर ही कहा जाना चाहिए । चाहे वह मनुष्य हो या भगवान हो। धर्म शास्त्र ऐसा पक्षपात क्यों करता है ? एक कार्य को एक ने किया तो लीला और वही कार्य कोई सामान्य मानवी करे तो चोरी । वस्त्र चोर, मक्खन चोर के विशेषण लगाकर हम किसी को भगवान कह सकते हैं परन्तु मनुष्य यदि उस कार्य को करे तो वह भगवान नहीं बन सकता वह चोर कहलाएगा। ऐसा अन्याय क्यों ? भगवान का प्रादर्श हमारे लिए कितना ऊंचा होना चाहिए ? बेदाग सर्वथा दाग रहित, आदर्श निष्पाप-निष्कलंक जीवन होना चाहिए तो ही वह भक्त के लिए अनुकरणीय अनुसरणीय बनेगा । अन्यथा बाप अण्डे खाए और बेटे को ना कहे यह कैसे चरितार्थ होगा ? क्या भगवान का ऐसा स्वरूप करके हमने भगवान के स्वरूप को विकृत नहीं बनाया है ? कितनी विकृति लाई है।
इतना ही नहीं जिस भगवान को सृष्टि का कर्ता कहा उसे ही सृष्टि का सहारक, विनाशक भी माना, और वह भी ईश्वर । लोक व्यवहार के संसार में देखें कि क्या एक माता अपने संप्तान को जन्म देकर वही संतान को खाने लग जाएगी ? या क्या वही मां बालक का गला घोंट कर मार देगी ? यदि मार दे तो क्या वह मां मां कहलाएगी या नरपिशाची राक्षसी चुडैल कहलाएगी ?
कर्म की गति न्यारी