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-बचानो · बचाओ'छुड़ाओ छूड़ाओ। किसी सज्जन को यह सुनकर दया आई और वह छूड़ाने आया। साथ में किसी दूसरे को भी मदद में लेता आया। दोनों ने दो हाथ पकड़ कर खिचना शुरू किया। जैसे जैसे दोनों जोर लगाकर हाय खिचते जा रहे थे कि युवक हाथ मजबूत पकड़ रहा था। उसकी मजबूत पक्कड़ से वे दोनों छुड़ा नहीं सके और चल दिये। यह दृश्य एक तीसरा सज्जन आया। उसने सोचा कि इस युवक ने खःभे को पकड़ रखा है कि इस खम्भे ने युवक को पकड़ा है ? क्या बात है ? अन्दर से उत्तर मिला खम्भा तो जड़ है । जड़ कहा चेतन को पकड़ रखता है ? अत: इस युवक ने ही खम्भे को पकड़ रखा है, और फिर भी यही चिल्ला रहा है बचाओ बचाओ'छुड़ाओ · छुड़ाओ " । क्या बात है ? गंगा उल्टी बह रही है । यदि खम्भे ने पकड़ रखा होता और युवक चिल्लाता तो बात सही भी थी। लेकिन खुद ही चिल्ला रहा है । यह कैसी मूर्खता है ? इसने खम्भे को पकड़ रखा है और खम्भा तो चिल्ला भी नहीं रहा है कि जड़ है। चिन्तक था चिन्तन किया । यहां बल का काम नहीं था । कल (अक्कल) का काम है। उस सज्जन ने कस कर दो थप्पड़ उस युवक के मुंह पर जोर से मारी। चमत्कार ही समझ लो। युवक के हाथ छूट गए और सीधे गाल पर लग गए ! युवक ने रोते हुए भारी स्वर में कहा मुझे मारा क्यों ? क्या यह छुड़ाने का बचाने का तरीका है ? सज्जन ने कहामाफ करना कभी ऐसा भी तरीका अजमाना पड़ता है। जबकि मेरे पहले दो सज्जनों ने हाथ खिचकर काफी प्रयत्ल किया पर नहीं छूड़ा सके अतः मैने बुद्धि पूर्वक एवं युक्ति पूर्वक यह तरीका अपनाया है । अतः माफ करना । परन्तु में यह पूछ रहा हुँ तूने खम्भे को पकड़ रखा था कि खम्भे ने तूझे पकड़ रखा था ? यदि खम्भे में करंट होता तो कब का मर चुका होता। यह तो बताओ किसने किसको पकड़ रखा था। आश्चर्य है कि तुमने ही खम्भे को पकड़ रखा और तुम ही चिल्ला रहे थे तो क्या यह मूर्खता नहीं थी।
वाह ! बहुत अच्छा प्रश्न था उस सज्जन का इस रूपक को हम किसी संसारासक्त संसारी पर लें और देखें कि हमने संसार को पकड़ रखा है कि संसार ने हमको पकड़ रखा है ? हम साधु-संतों के पास जाते हैं कहते हैं कि हे भगवन् ! मेरे ऊपर दया करो । इस संसार से बचानो"छुड़ाओं ! साधु-संत सदा ही संसार छोड़ने का उपदेश देते हैं लेकिन संसार ने यदि आपको पकड़ा हो तो तो आपको उसके पंजे से छुड़ा भी सकें। परन्तु संसार ने तो आपको पकड़ा नहीं है । आपने संसार को पकड़ कर रखा है। अतः साधु-सन्तों को चाहिए कि पहले दो सज्जनों की तरह प्रयत्न न करके तीसरे सज्जन के जैसा प्रयोग करे तो तो चमत्कार सम्भव
'कर्म की गति न्यारी
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