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________________ आसक्त बनना यह प्रमाद है विकथा आदि में रस रखना भी प्रमाद है । जो आगमविहित कुशल क्रियानुष्ठानादि है उनमें अनादर करना प्रमाद है । मन-वचन-कायादि योगों का दुष्प्रणिधान - आर्तध्यानादि की प्रवृत्ति प्रमाद भाव है । प्रमाद भी पांच प्रकार का बताते हुए शास्त्रकार महर्षि कहते हैं मज्जं - विषय - कषाया-निद्रा-विकहा य पञ्चमा मगिया । ए ए पञ्च जोबा पाडंति संसारे ॥ पमाया, मद, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा ये पांच प्रकार के प्रमाद बताए गए है जो जीवों को संसार में गिराते हैं । पतन के कारण भूत प्रमाद स्थान कर्म बंध कराते हैं । मद-८ जाति, लाभ, कुल, बल, रूप, तप, श्रत, ऐश्वर्य विषय - ५ स्पर्श रस. गंध वर्ण शब्द प्रमाद कषाय- ४ क्रोध मान माया लोभ निद्रा - ५ निद्रा निद्रानिद्रा प्रचला प्रचला प्रचला थीणद्धि विकथा - ४ स्त्री कथा देश कथा भक्त कथा राज कथा कषाय - कष + श्राय = कषाय — कष = संसार और आय = लाभ । अर्थात् संसार का लाभ जिससे हो वह कषाय है । अतः निश्चित हो गया कि जब जीव क्रोधादि कषायों की प्रवृत्ति करेगा तब संसार अवश्य बढ़ेगा । संसार कब बढ़ेगा ? जब कर्मबंध होंगे तब । अतः कषाय सबसे ज्यादा कर्म बंधाने में कारण है । तत्त्वा र्थाधिगम सूत्र में उमास्वाति महाराज ने बताया है कि - सकषायत्वात् जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते ” ( ८-२ ) । कषायादि से युक्त (सहित) जब जब जीव होता है तब तब कर्म योग्य पुद्गलों को जीव खिंचता है, ग्रहण करता है । कषाय भाव में जीव कर्म से लिप्त होता है । ये कषाय आश्रव में भी कारण हैं तथा कर्म बंध में भी कारण है । आत्मा स्वभाव दशा छोड़कर विभाव दशा में जाती है यह प्रमादभाव है । अतः कषाय करना यह आत्मा का स्वभाव नहीं विभाव है । इसलिए कषाय करना भी प्रमाद है । अतः कषायों को प्रमाद में भी गिना गया है । क्रोध - मान-माया और कर्म की गति न्यारी १६१
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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