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(१) परिणाम अच्छे-क्रिया खराब । (२) परिणाम खराब-क्रिया अच्छी । (३) परिणाम अच्छे और क्रिया भी अच्छी। (४) परिणाम खराब और क्रिया भी खराब ।
इसमें परिणाम खराब वाले दोनों भंग अशुभ कर्म बंध कारक है । जबकि परिणाम अच्छे दो भंग में परिणाम के साथ साथ क्रिया भी अच्छी है तो दोहरा लाभ है । इस तरह कर्म बन्ध का मुख्य आधार परिणाम की शुभाशुभता पर है ।
कर्म बंध के हेतु
परिणाम और क्रिया का जो विचार कर्म बंध में किया है। उन कर्मों का बंध आत्मा के साथ जब होता है तब बंध के हेतु भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में बंध हेतु इस प्रकार बताए है-मिथ्यादर्शना-प्रविरति-प्रमादकषाय-योगा बन्ध हेतवः ॥८-१) मिथ्यात्व अविरति-प्राद-कषाय और योग ये पांच बंध के हेतु है।
कर्म बंध के हेतु
मिथ्यात्व
अपिरति
प्रमाद
कषाय
योग
કર્મબંધના હેતુઓ
दात्य
हेतु जो कारण रूप होते हैं । आत्मा के साथ कर्म बंध का क्या कारण है ? किस कारण से कर्म बंध होता है ? प्रयोजन विशेष को यहां हेतु कहा है। ऐसे हेतु के रूप में मिथ्यात्वादि पांच को कर्म बंध के कारण रूप में बताए हैं। आश्रव क्रिया से तो बाहरी आकाश प्रदेश में रही हुई सिर्फ कार्मण वर्गणा का आत्मा में आगमन मात्र हुआ है । आक
भाभा
कर्म की गति न्यारी
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