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८ कर्म की उपमा वाले ८ दृष्टान्त
पड-पडिहार - ऽसि मज्ज-हड-चित्त-कुलाल-भंडगारीणं । जह एएसि भावा, कम्माणऽवि जाण तह भावा ॥
आंख पर पट्टी, द्वारपाल ( चौकीदार), मधुलिप्त तलवार, मदिरापान, जंजीर, चित्रकार, कुम्हार तथा भण्डारी आदि के जैसे स्वभाव एवं कार्य है वैसे ही स्वभाव तथा कार्य कर्मों के हैं । क्रमशः आठों के बारे में सोचें ।
આંખે પાટા જેવું
(१) ज्ञानावरणीय कर्म - श्रांख पर पट्टी जैसा । आंख से देखते हैं । देखने की शक्ति - ज्योति आंख में होते हुए भी जब आँख पर पट्टी बांधी जाती है तब कुछ भी नहीं दिखाई देता । देखता मनुष्य भी अन्धे की तरह चलने लगता है । दर्शन की शक्ति ज्योति होते हुए भी आंख पर बंधी पट्टी देखने में बाधक बन गई । आवरण बन गई । देखने की शक्ति को आच्छादित कर दी । ठीक इसी तरह आत्मा में अनन्त ज्ञान शक्ति है । जिससे आत्मा सब कुछ जान सकती है । परन्तु उस ज्ञान गुण पर प्राए हुए ज्ञानावरणीय कर्म ने आंख पर की पट्टी की तरह काम क्रिया । ज्ञान गुण को ढक दिया-छिया दिया । अब अन्धे की तरह बेचारा जीव अज्ञानाधीन प्रवृत्ति करता है । स्पष्ट समझ में नहीं आता । याद नहीं रहता । भूल जाता है इत्यादि सैकड़ों समस्याएं ज्ञान के क्षेत्र में उत्पन्न होती है | अतः ज्ञानावरणीय कर्म को आंख पर बंधी पट्टी की उपमा दी है ।
જ્ઞાનાવણીયÆ
દ્વા૨પાળવું
(२) द्वारपाल के जैसा दर्शनावरणीय कर्म - राजमहल के बाहर द्वारपाल = चौकीदार जो खड़ा रहता है उसे पडिहारप्रतिहार कहते हैं किसी को भी राजमहल में जाने से पहले द्वारपाल रोकता है । द्वारपाल के द्वारा रोका गया मनुष्य जिस तरह राजा के दर्शन नहीं कर पाता है । ठीक उसी तरह आत्मा को देखने की शक्ति अनन्त है । अतः अनन्त दर्शन गुण कहा जाता है । परन्तु इस अनन्त दर्शन पर आया हु दर्शनावरणीय कर्म इस गुण को ढक देता है । दबा देता है । परिणाम स्वरूप अनन्त हुए भी आत्मा सब कुछ देख नहीं पाती । यह दर्शनावरणीय
દર્શનાવરણીયમૅ.
दर्शन शक्ति होते
कर्म का कार्य है ।
कर्म की गति न्यारी
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