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नहीं होगा तो क्रिया करेगा कौन ? क्रिया का कर्ता कौन सिद्ध होगा ? कर्ता के अभाव में कोई क्रिया नहीं होतो है । अतः क्रियाएं जगत में होती है तो उसका कर्ता जीव भी अवश्य मानना ही पड़ेगा। उसी तरह कर्म भी क्या हैं ? कर्म क्रिया जन्य है । अतः इस क्रिया का कर्ता भी जीव ही है । वही कर्म करता है । यदि ऐसे कर्मो को न माना जाय तो क्या होगा यह विचार करिए । अभी तक जो हम सोचते आए हैं, जिस बात पर विचार किया हैं कि जगत है, जगत विचित्रताओं से भरा पड़ा है । समस्त संसार में नाना प्रकार की विचित्रता, विविधता एवं विषमता भरी पडी है । जबकि इनका कर्ता ईश्वर किसी भी रूप में सिद्ध हो ही नहीं सकता, तो फिर जीव ही कर्ता के रूप में सिद्ध होगा। और उस जीव कर्ता की क्रिया के रूप में कर्म सिद्ध होगा। अतः समस्त संसार की सारी विवित्रताओं, विषमताओं आदि का एकमात्र कारण कर्म ही सिद्ध होगा । अतः ये कर्मजन्य विचित्रता, विषमता आदि है । अब कर्म सत्ता को ही नहीं मानेंगे तो पुनः विसंगति आएगी । जबकि विचित्रता आदि तो संसार में प्रत्यक्ष दिखाई देती है । इनका तो कोई निषेध नहीं कर सकता, चकि सभी जीवों की आंखों के सामने समस्त ससार की विचित्रताएं, विषमताएं आदि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ये तो संसार में भरी पड़ी है । अतः इनके पीछे कर्म की कारणता अवश्य स्वीकारनी पड़ेगी।
जैसे हम धूए को देखकर अग्नि का निर्णय करते हैं। चूकि यह निश्चित है कि जहां-जहां भी धूआं रहता है वहां अग्नि निश्चित रूप से अवश्य ही रहती है। धूए का अग्नि के साथ अविनाभाव संबंध है । धूआं अग्नि के बिना उत्पन्न ही नहीं होता है अतः उसके बिना रह भी नहीं सकता । हम मकान के ऊपर से या दूर से धुआं देखते है । धूआं पहले दिखाई देता है । जबकि अग्नि दिखाई नहीं भी देती । परन्तु धूए को प्रत्यक्ष देखकर आग लगी है यह अनुमान लगाते है यह ज्ञान भी सही है । चूकि कार्य कारणभाव सही है अतः ज्ञान भी सही है।
ठीक इसी तरह संसार की विचित्रता, विषमता, विविधता को देखकर कम का अनुमान ज्ञान सही ठहरता है । चूकि विचित्रता आदि का कर्म के साथ अविनाभाव सम्बन्ध है, कार्य कारणभाव का सम्बन्ध है, विचित्रता आदि कार्य है । कार्य कभी कारण के बिना हो नहीं सकता । अतः विचित्रता आदि कार्य के पीछे कर्म की कारणता अनिवार्य है। ईश्वरादि की कारणता सिद्ध हो नहीं सकती। कर्म की कारणता कसौटी पर खरी उतरती है। अतः कर्म ही समस्त संसार की विचित्रता आदि का एकमात्र कारण सिद्ध होता है ।
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कर्म की गति न्यारी