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________________ ८५२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र को सुन कर जरा-सा भी द्वषभाव के चक्कर में आ गया तो उसकी अन्तरंग परिग्रह के त्याग की साधना चौपट हो जायगी। इसलिए उस समय इस भावना के प्रकाश में यही विचार करना है कि ये अमंगलकर शब्द तेरा क्या बिगाड़ेंगे ? अगर इन भाषावर्गणा के पुद्गलों का प्रभाव तू अपनी आत्मा पर पड़ने देगा, तो इससे तेरी आत्मा की हार ही होगी; जीत नहीं। अतः जीत इसी में है कि इन शुभ या अशुभ शब्दों को कानों से सुन कर भी मन पर असर न होने दे; वचन से भी उन शब्दों की प्रतिक्रिया प्रगट न करे तथा शरीर की चेष्टा से भी उन शब्दों का प्रभाव व्यक्त न होने पाए । अर्थात्-किसी भी प्रिय और अप्रिय शब्द को सुन कर मन को निश्चेष्ट बना दे, वाणी को उसकी प्रतिक्रिया प्रगट करने से मूक बना दे, और काया की चेष्टाओं को उसके प्रभाव से शून्य बना दे। तभी अपरिग्रही साधु समभाव में स्थिर हो कर जितेन्द्रिय और संयतेन्द्रिय बनेगा। और अन्तरंग परिग्रह से सर्वथा दूर रह कर अपनी आत्मा में स्थित हो सकेगा। वीतरागतापोषक शब्दश्रवण में अभिरुचि परिग्रह नहीं–पूर्वोक्त . सूत्रपाठ से यह ध्वनित हो जाता है कि जो शब्द राग, आसक्ति या मोहादि बढ़ाने वाले हैं, अथवा इसके विपरीत जो शब्द द्वष आदि के पोषक हैं, उन दोनों को राग और द्वष से अभिभूत हुए मन से ग्रहण करना ही अन्तरंग परिग्रह है । परन्तु जो शब्द वीतरागता की पुष्टि करने वाले हैं, किसी के सुरीले स्वर में वीतरागतापोषक भजनादि के श्रुतिमधुर शब्द कानों में पड़ रहे हैं तो वहाँ सुनने, अभिरुचि दिखाने और उनके बारे में बार-बार स्मरण-मनन करने का निषेध नहीं किया गया है। जो शब्द राग-मोहकामादिवर्द्धक हैं, उन्हीं से सावधान रहने का निर्देश है। वीतरागतावर्द्धक शब्दों से तो परिग्रह में अभिरुचि के बदले परिग्रह से विरक्ति ही पैदा होती है। _ 'अक्कोसफरुसखिसणअवमागणतज्जणनिभंछणदित्तवयणं'-इत्यादि शब्दों शब्दों का स्पष्टीकरण-'चुल्लूभर पानी में डूब मर' इस प्रकार के असुहावने वचन आक्रोशवचन हैं; 'अरे मुड !' इस प्रकार के वचन परुषवचन हैं; 'तू कुशील है, दुराचारी है' इत्यादि वचन खिसन- (निन्दा) वचन है; 'रे तू' आदि अनादरसूचक शब्द अपमानवचन हैं; 'तुझे देख लूगा' इत्यादि. फटकार के वचन तर्जनावचन कहलाते हैं; 'मुझे अपना मुह मत दिखा', 'हट जा मेरे सामने से' इत्यादि निर्भत्सनवचन हैं; रोष में झल्ला कर बोलना दीप्तवचन है, दूसरे को डराने, धमकाने, उद्विग्न करने के वचन त्रासनवचन हैं; गाड़ी, मोटर, जहाज, विमान, बम फटने, गोली छूटने तथा मशीनों आदि के चलने की अव्यक्त कर्कश ध्वनि 'उत्कूजित कहलाती है; आंसू गिराते हुए बोलना रुदित है, लगातार एक ही शब्द की रट लगाना रटित है,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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