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________________ ८४२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र काया पर पूर्ण संयम रखने वाला सुस्थितेन्द्रिय हो कर चारित्र-धर्म का भलीभांति आचरण करता है। _तीसरी घ्राणेन्द्रियभावना इस प्रकार है-घ्राणेन्द्रिय से मनोज्ञ और घ्राणप्रिय गन्धों को संघ कर साधक रागादि न करे। वे मनोज्ञ गन्ध कौनकौन-से हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं-जल में उत्पन्न हुए तथा स्थल में उत्पन्न हुए सरस पुष्प, फल, पेयपदार्थ तथा भोजन, कमलकुष्ठ, तगर, सुगन्धित तमालपत्र, सुगन्धित छाल-दालचीनी आदि, दमनक नामक फूल, मरुए का फूल, इलायची का रस, जटामांसी, गोशीर्ष नामक सरस चन्दन, कपूर, लौंग, अगर, केसर, कक्कोल नामक सुगन्धित फल, खसखस सफेद चन्दन, खुशबूदार पत्तों व अन्य सुगन्धित द्रव्यों के संयोग से बनी हुई धूप की सौरभ में तथा अपनी-अपनी ऋतु में पैदा हुए कालोचित अत्यन्त घनीभूत सुगन्ध से युक्त द्रव्यों तथा दूर-दूर तक खुशबू फैलाने वाले सुगन्धित पदार्थ से युक्त द्रव्यों में तथा इसी प्रकार की मनोज्ञ एवं घ्राणप्रिय अन्यान्य सुगन्धों के विषय में अपरिग्रही साधु को आसक्ति नहीं करनी चाहिए, न उनके बारे में राग, मोह, लोभ, गद्धि, तथा अपने आपको न्योछावर ही करना उचित है । यावत् उनके बारे में स्मरण और मनन भी न करे । पुनरपि इस प्रकार की भावना करेघ्राणेन्द्रिय से अमनोज्ञ तथा पापजन्य अशुभ गन्धों को सूंघ कर रोष-द्वषादि नहीं करना चाहिए। वे अशुभ गन्ध कौन कौन-से हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं- मरे हुए सांप, मृत घोड़े, मरे हुए हाथी, मरे हुए गाय-बैल, भेडिये, कुत्ते, सियार, मनुष्य, बिलाव, सिंह और चीते के सड़ेगले कृमि से भरे बहुत ही बदबूदार कलेवरों में, पूर्वोक्त दुर्गन्ध मय पदार्थों में तथा इसी प्रकार के अमनोज्ञ एवं पापजन्य अशुभ अन्यान्य दुर्गन्धों के विषय में निष्परिग्रही श्रमण को क्रोध-द्वषादि नहीं करना चाहिए। उन वस्तुओं के या दुर्गन्ध फैलाने वालों के प्रति अवज्ञा, घृणा, तिरस्कार, धिक्कार, डांटफटकार तथा जुगुप्सानफरत करना उचित नहीं है। इस प्रकार घ्राणेन्द्रियभावना से भावित साधु की अन्तरात्मा चिन्तनयुक्त प्रयोग से मनोज्ञ और अमनोज्ञ में तथा शुभ और अशुभ में राग-द्वेष को रोक लेती है, मन, वचन, काया को समेट कर संवरित कर लेती है और यावत् अपनी इन्द्रियों को अन्त में सुस्थित करके बह चारित्रधर्म का आचरण करता है।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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