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________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवर ७६५ ग्रहण करने भर से परिग्रह नहीं हो जाता और बाहर से वस्तुओं को बिना सोचे-समझे अज्ञानवश छोड़ देने से या न रखने से कोई अपरिग्रही भी नहीं बन जाता। इसीलिए शास्त्रकार ने अपरिग्रही साधु के लिए साफ-साफ कहा है 'न कप्पई "अप्पं व बहुं व अणु व थूलं व मणसावि परिघेत्त... परस्स अज्झोववायलोभजणणाई परियड्ढेउंतिहिवि जोगेहि परिघेत्तु ।' साधु कई दफा यह सोच लेता है कि कोई चीज जंगल में पड़ी है, वह किसी की मालिकी की नहीं है, और न वह किसी के अधीन है, प्रकृति का भंडार खुला है, पानी, फल, वनस्पति, अनाज आदि यों ही पड़े हैं, साधु उसमें से जरूरत के अनुसार ले ले और उपयोग करले तो क्या हर्ज है ? मगर अपरिग्रही साधु के लिए शास्त्रकार उपर्युक्त पंक्तियों में साफ-साफ निषेध कर रहे हैं कि ऐसी कोई भी चीज चाहे वह फालतू ही पड़ी हो, या कम कीमत की हो, परन्तु साधु के लिए लेना उचित नहीं है। इसके पीछे दो कारण हैं। एक तो यह है कि सोना, चांदी, खेत, मकान, दासी-दास, नौकरचाकर, हाथी-घोड़ा, रथ, पालकी, सवारी, छाता, जूता, • पंखा, तांबो, लोहा, रांगा, जस्ता, कांसा, मणि, मोती, सीप, शंख, हाथीदांत, कांच, सींग, पत्थर, चमड़ा या कीमती रेशमी कपड़ा या अन्यान्य कीमती रंग बिरंगी व फैशनेबल वस्तुएं, जिनको देखकर दूसरों का जी लेने के लिए ललचाए या जिनके लिए हत्या आदि करे, ऐसी बेशकीमती चीज साधु के संयमपालन के लिए कतई उपयोगी नहीं है। इन्हें ममत्वपूर्वक रखने से अन्य अनेक दोषों के बढ़ने की सम्भावना है। क्योंकि जमीनजायदाद, धन दौलत और मकान आदि के लिए दुनिया में - सगे भाइयों, पिता-पुत्र एवं ससुरदामाद आदि में भी परस्पर भयंकर झगड़े, युद्ध मुकद्दमेबाजी. हत्या, मारपीट, दंगाफिसाद आदि हुए हैं। साधु इन चीजों में से किसी भी चीज को लेकर व्यर्थ ही एक नई आफत मोल ले लेगा। फिर इन चीजों को लेकर साधर्मी साधुओं में भी परस्पर कलह और मनोमालिन्य बढ़ेगे, आत्मशान्ति स्वाहा हो जायगी, जीवन की उत्तम साधना खटाई में पड़ जाएगी। . इनके निपेध करने का दूसरा कारण यह है कि साधु यदि इन चीजों को रखने लगेगा तो उसे मन ही मन इन चीजों को अपने भक्तों से लेने की चाह बढ़ेगी, उसके लिए वह यंत्र, मंत्र, चमत्कार, ज्योतिष आदि के प्रयोग लोगों को बताएगा। आखिर उसे धनाढ्यों या सत्ताधीशों की गुलामी, खुशामद या जीहजूरी करनी पड़ेगी । उसकी स्वाधीनता लुट जाएगी, वह धनवानों के हाथों में बिक जाएगा और उन्हीं की हां में हां मिलाएगा। उनके गलत कारनामों का भी समर्थन करता रहेगा। उनके गलत कामों को भी आशीर्वाद देने लगेगा। कदाचित् कोई साधु गुलामो न करे तो भी उसकी आत्मा तो इस अनावश्यक परिग्रह के बोझ से दब ही जायगी,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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